देश के कई हिस्सों में धान की कटाई जारी है. धान की कटाई के बाद रबी सीजन (Rabi Crops) की मुख्य फसल गेहूं की बुवाई (Wheat Cultivation) शुरू होगी. जलवायु परिवर्तन का असर गेहूं की खेती पर पड़ा है. इससे उत्पादन में कमी आती है जिससे किसानों को उनकी मेहनत का सही मुनाफा नहीं मिल पाता है. ऐसे में किसानों के लिए गेहूं की पारंपरिक किस्मों की बुवाई की करना फायदेमंद साबित हो सकता है.
ऐसी ही गेहूं की एक पारंपरिक किस्म है खपली. खपली गेहूं को एमर गेहूं (Emmer Wheat) के रूप में भी जाना जाता है. यह पूरी तरह से प्राकृतिक है. यह गेहूं औषधीय गुणों से भरपूर है. इस गेहूं का आटा बाजार में ₹150 किलो तक बिकता है. ऐसे इस रबी सीजन में किसानों को खपली गेहूं (Khapli Wheat) की खेती सामान्य गेहूं की तुलना में कई गुना ज्यादा मुनाफा दिला सकता है.
गेहूं की इस किस्म की बाहरी परत हल्के भूरे रंग की होती है और बहुत सख्त होती है जो अनाज को लंबे समय तक जीवित रहने में सक्षम बनाती है. दस हजार साल पहले मध्य पूर्व काल के इस गेहूं के बीज को किसानों ने ही सुरक्षित रखा है. इसका बीज किसी प्रकार के भी रासायनिक दवा से मुक्त है, देश में अब तक इसके लिए किसी प्रकार के रिसर्च की जानकारी नहीं है. सेहत के लिए हेल्दी है. आज सामान्य गेहूं जहां 2500 रुपये क्विंटल है, वहीं इस गेहूं का भाव 12000-16000 रुपये प्रति क्विंटल है.
औषधीय गुणों से भरपूर
खपली गेहूं (Khapli Wheat) फाइबर, वसा और प्रोटीन से भरपूर है. इसमें कैल्शियम और आयरन की मात्रा सामान्य गेहूं से कम होती है. फाइबर से भरपूर इसका आटा वजन घटाने में मदद करता है. सामान्य गेहूं के विपरीत, खपली गेहूं पुरातन समय का अनाज है और इसका आटा रंग में लाल होता है और इसमें कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स होता है जो शरीर में चीनी की धीमी रिलीज़ में मदद करता है.