कबीर जयंती पर दर्रीधाम में हुआ चौका आरती, राहगीरों में बाटें प्रसाद, दूर-दूर से पहुंचे अनुयायी

संत कबीरदास जी की 647वीं वर्षगांठ पर सद्गुरु कबीर आश्रम दर्रीधाम में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी 22 जून को सद्गुरु कबीर प्रागट्या उत्सव कार्यक्रम बड़े धूम धाम से मनाया गया| यह कार्यक्रम परंपूज्य आचार्य चेतनदास जी साहेब के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ । इस कार्यक्रम मे दूर दूर से संत  महंतो का भव्य आगमन हुआ । तथा  कबीर भजन मंडलिया भी इस कार्यक्रम मे सम्मिलित हो कर हंस जनों का उत्साह बढ़ाया।
यह कार्यक्रम सद्गुरु कबीर आश्रम दर्री धाम के माध्यम से संपन्न हुआ, जिसमें  प्रातः 7 बजे से गांव के चौक पर प्रसाद वितरण किया गया तत्पश्चात कबीर पंथ का चौका आरती का कार्यक्रम किया गया। जिसमें भारतीय राष्ट्रीय मजदूर इंटक कांग्रेस के महिला प्रदेश अध्यक्ष श्रीमती अंजली बघेल अपने टीम के साथ पहुंच कर सतगुरु कबीर साहेब जी का आशीर्वाद प्राप्त किया ।

आपको बता दें की कबीरदास जी ने समाज में फैले अंधविश्वास, रूढ़िवादी परंपराओं और पाखंड का विरोध करते हुए इंसानियत को सबसे ऊपर रखा.

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संत कबीर दास जी ने अपने दोहों और विचारों के जरिए जनमानस को प्रभावित किया था. आज भी उनके दोहे जीवन का सच बयां करती है, इन दोहों में सुखी जिंदगी और सफलता का राज छिपा है.

निंदक नियेरे राखिये, आंगन कुटी छवायें।

बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय।

कबीर जी कहते हैं कि, हमें निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने आंगन में कुटिया बनाकर कर निकट रखना चाहिए क्योंकि वह हमारे अवगुण बिना साबुन और पानी के निर्मल कर देते हैं. जब कोई व्यक्ति हमारी निंदा करता है और ऐसे लोग अगर पास रहेंगे तो आपकी बुराइयां आपको बताते रहेंगे.

जंत्र मंत्र सब झूठ है, मति भरमो जग कोये।

सार शब्द जानै बिना, कागा हंस ना होये।

कबीर जी इस दोहे में कहते हैं कि,” जंत्र – मंत्र आदि सब झूठी बातें हैं. इससे बुद्धि भ्रमित हो जाती है, इसलिए इन सब बातों से पर गौर न करें, इनके जाल में फंसकर व्यक्ति सही गलत की समझ भूल जाता है. जब तक शब्द का ज्ञान नहीं तब तक मनुष्य ज्ञानी नहीं हो सकता वैसे ही जीवन के मूल तत्व और मंत्र को जाने बिना कौवा कभी भी हंस नहीं बन सकता है.

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धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होए।

 माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होए।

कबीर जी कहते हैं कि हमें धैर्य पूर्वक नियमित रूप से अपने काम करते रहना चाहिए और समय आने पर ही उसके परिणाम प्राप्त होंगे, जैसे एक माली चाहे वृक्ष को सौ घड़े पानी से सींचे लेकिन उस वृक्ष पर फल ऋतु के आने पर ही लगता है धैर्य का फल भी मीठा होता है.