झुंझुनूं.
यह विहंगम दृश्य जिसमें असहाय गोवंश कूड़ा, करकट और लठ्ठ खाने की मजबूरी को प्रदर्शित करता है। गोवंश की सेवा को लेकर गोशालाओं का संचालन हो रहा है, जिसको सरकार अनुदान देने के साथ ही शेखावाटी के भामाशाह उदार मन से दान देते हैं। जब जिला मुख्यालय पर प्रशासन की नाक के नीचे गोवंश दयनीय स्थिति में जी रहा है।
प्रदेश में बीजेपी सरकार के गठन होते ही प्रशासन ने जिले की गोशालाओं का निरीक्षण कर खानापूर्ति की। लेकिन शायद सड़कों पर घूम रहा असहाय गोवंश प्रशासन को दिखाई नहीं दे रहा। गोशाला प्रबंधन की बात करें तो उनका कहना है कि सड़कों पर असहाय गोवंश घूम रहा है, यह नगर परिषद की जिम्मेदारी है कि उनको गोशाला में भिजवाने की व्यवस्था करें, यह कहकर अपनी नैतिक जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ा जा रहा है। गोशाला संचालन की आड़ में गोवंश के साथ धोखा हो रहा है। गोसेवक के रूप में खुद को महिमा मंडित करने की खबरें बहुत देखने को मिलती हैं। लेकिन यथार्थ के धरातल पर गोवंश की दुर्दशा इस दृश्य से देखकर लगाया जा सकता है। ऐसा नहीं कि गो सेवकों की कमी है या गोसेवा का जज्बा लोगों में नहीं है। चिड़ावा के समीप जखोड़ा में सीमित साधनों से बीमार व घायल गोवंश का उपचार निःशुल्क करने की व्यवस्था गो सेवकों ने कर रखी है। जबकि उन गोशालाओं को जो सरकार से अनुदान लेने के साथ उनको प्रवासी भामाशाहों से समय-समय पर आर्थिक सहयोग मिलता रहता है।
उन भामाशाहों को भी इस बात पर विचार करना चाहिए कि उनके द्वारा दी गई आर्थिक सहायता का उपयोग गोवंश की सेवा में न होकर गोवंश की सेवा की आड़ में दिखावा तो नहीं हो रहा है। अंत में गोवंश की इस दयनीय स्थिति को लेकर जनता की अदालत में एक ज्वलंत प्रश्न रखने की कोशिश है कि आखिर गोवंश की इस दयनीय स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है, गोशाला संचालक, भामाशाह, प्रशासन या सरकार?