चाइल्ड पोर्नोग्राफी पर आया ‘सुप्रीम’ फैसला, देखना, डाउनलोड करना भी दंडनीय अपराध

नई दिल्ली

सबसे पहले आपको बता दें कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी मतलब 18 साल से कम उम्र वाले नाबालिगों को सेक्शुअल एक्टिविटी में दिखाना. उनकी न्यूड कॉन्टेंट को इलेक्ट्रॉनिक या किसी भी और फॉर्मेट में पब्लिश करना, दूसरों को भेजना अपराध माना जाता है. इस मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है. भारत में तेजी से बढ़ रहा है पोर्न वीडियो का बाजार 2026 तक मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वालों की संख्या 120 करोड़ होने की उम्मीद है.

भारतीय औसतन एक बार में पोर्न वेबसाइट पर 8 मिनट 39 सेकेंड समय गुजारता है. यही नहीं पोर्न देखने वाले 44% यूजर्स की उम्र 18 से 24 साल है, जबकि 41% यूजर्स 25 से 34 साल उम्र के हैं.

गूगल ने 2021 में रिपोर्ट जारी कर बताया है कि दुनिया में सबसे ज्यादा पोर्न देखने के मामले में भारत छठे स्थान पर है. वहीं, पोर्न हब वेबसाइट के मुताबिक इस वेबसाइट को यूज करने वालों में भारतीय तीसरे नंबर पर आते हैं.

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना या देखना POCSO अधिनियम के तहत अपराध है.

चाइल्ड पोर्नोग्राफी को डाउनलोड करना या देखना POCSO अधिनियम के तहत अपराध है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को "चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द को "बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री" से बदलने के लिए एक अध्यादेश जारी करने का सुझाव दिया.

देखना और डाउनलोड करना दोनों अपराध है.  POCSO अधिनियम के तहत माना जाएगा अपराध है.

केंद्र सरकार को अध्यादेश लाने के सुझाव दिया है. चाइल्ड पोर्नोग्राफी शब्द को बाल यौन शोषण से बदलने के सुझाव दिया है.

सभी अदालतों को यह भी निर्देश दिया है कि वे अब "चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी" शब्द का उपयोग न करें.

मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को भी पलटा-मद्रास हाई कोर्ट ने कहा था चाइल्ड पोर्नोग्राफी अकेले में देखना अपराध नहीं

चाइल्ड पोर्नोग्राफी के बढ़ते मामले को देखते हुए केंद्र सरकार ने साल 2019 में पॉक्सो एक्ट में बदलाव किए थे.

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धारा 14 और 15 के मुताबिक अगर कोई चाइल्ड पोर्नोग्राफी को बांटता, फैलाता, या दिखाता है, तो उसे 3 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं.

इसके अलावा कोई शख्स 'चाइल्ड पोर्नोग्राफी' को कमर्शियल उद्देश्य (बेचने/खरीदने) के लिए रखता है, तो उसे कम से कम तीन साल की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.

अगर कोई दूसरी बार ये करते हुए पाया जाता है तो सजा पांच से सात साल तक बढ़ाई जा सकती है.

भारत में ऑनलाइन पोर्न- भारत में ऑनलाइन पोर्न देखना गैर-कानूनी नहीं है, लेकिन इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 में पोर्न वीडियो बनाने, पब्लिश करने और सर्कुलेट करने पर बैन है.

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 के सेक्शन 67 और 67A में इस तरह के अपराध करने वालों को 3 साल की जेल के साथ 5 लाख तक जुर्माना देने का भी प्रावधान है.

इसके अलावा IPC के सेक्शन-292, 293, 500, 506 में भी इससे जुड़े अपराध को रोकने के लिए कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं. चाइल्ड पोर्नोग्राफी में POCSO कानून के तहत कार्रवाई होती है.
क्या कहा था मद्रास हाईकोर्ट ने?

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मद्रास हाईकोर्ट ने इस साल जनवरी में पारित अपने फैसले में कहा था कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना POCSO या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत अपराध नहीं है क्योंकि ऐसा कार्य बिना किसी को प्रभावित या गोपनीयता में किया जाता है.  

NGO ने दी थी ये दलील

एनजीओ जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस ने वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. इसमें कहा गया था कि इससे बाल अश्लीलता को बढ़ावा मिलेगा और बच्चों की भलाई के खिलाफ काम होगा. याचिका में कहा गया था कि आम जनता को यह धारणा दी गई है कि बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना और रखना कोई अपराध नहीं है और इससे बाल पोर्नोग्राफी की मांग बढ़ेगी और लोग मासूम बच्चों को पोर्नोग्राफी में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित होंगे.