भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या, भारत में मॉब लिंचिंग के खिलाफ सख्त कानून, जाने क्या-क्या धाराएं हुई शामिल

भारत में पिछले कुछ सालों में भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालने (मॉब लिंचिंग) की कई दुखद घटनाएं हुई हैं। ये घटनाएं अक्सर नफरत, अफवाहों, खुद की कानून बनाने की सोच या सामाजिक तनाव की वजह से होती हैं। पहले, भारतीय दंड संहिता (IPC) में ऐसे मामलों के लिए कोई खास कानून नहीं था। इन्हें सामान्य अपराध जैसे हत्या या दंगा के तहत देखा जाता था।

लेकिन अब 2023 में बनाए गए भारतीय न्याय संहिता (BNS) में भीड़ द्वारा हत्या जैसे मामलों के लिए कड़ा कानून लाया गया है। राजस्थान, झारखंड, मणिपुर और पश्चिम बंगाल जैसे कुछ राज्यों ने अपने खास एंटी-लिंचिंग कानून भी बनाए हैं, लेकिन कुछ पर अब भी राष्ट्रपति की मंजूरी बाकी है। फिर भी, अभी भी इन कानूनों को लागू करने में ढील, सही आंकड़ों की कमी और सामाजिक-राजनीतिक चुनौतियां बनी हुई हैं।

 

मॉब लिंचिंग क्या है?

मॉब लिंचिंग का मतलब होता है किसी व्यक्ति को भीड़ द्वारा पीट-पीटकर मार डालना या गंभीर रूप से घायल करना, बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के। ऐसा अक्सर धर्म, जाति, समुदाय, निजी सोच, भाषा, अफवाह या गाय से जुड़ी बातों को लेकर होता है। इसमें भीड़ खुद ही न्याय करने की कोशिश करती है, जो पूरी तरह गलत और गैरकानूनी है। भारत में मॉब लिंचिंग के शिकार कई लोग बने हैं, जैसे किसी बात पर विरोध करने वाले लोग, गाय से जुड़ी अफवाहों में फंसे लोग, नीची जाती के लोग, डॉक्टर और आम नागरिक भी।

 

इसे भी पढ़े :- घायल लोगों की मदद के लिए पहुंचे कार चालक के साथ मॉब लिंचिंग

 

पुराना कानून और उसकी कमी: IPC की सीमाएं

भारत का पुराना आपराधिक कानून, यानी IPC (Indian Penal Code) 1860, में “लिंचिंग” नाम का कोई अलग अपराध नहीं बताया गया था। इसलिए ऐसे मामलों को दूसरे सामान्य कानूनों के तहत ही देखा जाता था, जैसे:

  • धारा 302: हत्या
  • धारा 307: हत्या की कोशिश
  • धारा 147, 148: दंगा करना
  • धारा 149: गैरकानूनी भीड़ और एक जैसी मंशा से अपराध
  • धारा 153A: समुदायों के बीच नफरत फैलाना

क्योकि लिंचिंग को अलग से परिभाषित नहीं किया गया था, इसलिए सरकारी रिकॉर्ड (जैसे NCRB रिपोर्ट) में भी सही आंकड़े जुटाना मुश्किल था। 2017 से पहले तक लिंचिंग से जुड़ी घटनाओं का कोई साफ़ डाटा नहीं था।

 

इसे भी पढ़े :- देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में मॉब लिंचिंग का मामला, युवक को भीड़ ने पीटकर मार डाला, हाथ जोड़ते रहे पिता

 

 

तहसीन पूनावाला केस (2018): सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 2018 के तहसीन पूनावाला बनाम भारत सरकार केस में भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) पर रोक लगाने के लिए कुछ जरूरी आदेश दिए। मुख्य बातें:

  • नफरत फैलाने पर सख्त कार्रवाई: अफवाह या भड़काऊ भाषण देने पर तुरंत FIR, गिरफ्तारी और केस दर्ज हो (धारा 153A के तहत)।
  • सुरक्षा के इंतज़ाम: हर जिले में एक सीनियर पुलिस अफसर को नोडल अफसर बनाया जाए और संवेदनशील इलाकों में नियमित गश्त हो।
  • लापरवाही पर सजा: जो अधिकारी समय पर कार्रवाई नहीं करें, उनके खिलाफ भी कार्रवाई हो।
  • तेज़ सुनवाई: लिंचिंग के मामलों की सुनवाई 6 महीने के अंदर पूरी होनी चाहिए।
  • पीड़ित को मदद: राज्यों को ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए जिनसे पीड़ित को इलाज, कानूनी मदद और जीविका के लिए मुआवज़ा मिले।
  • निगरानी: राज्यों को सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देनी होगी और केंद्र सरकार से इस पर एक कड़ा कानून बनाने को कहा गया।

2023 में नया कानून: भारतीय न्याय संहिता (BNS)

साल 2023 में सरकार ने अंग्रेजों के ज़माने के पुराने कानून IPC को हटाकर भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 लागू की। इसमें पहली बार मॉब लिंचिंग (भीड़ द्वारा हत्या) को एक अलग और साफ़ अपराध के रूप में जोड़ा गया।

धारा 103(2) – भीड़ द्वारा हत्या: अगर 5 या ज्यादा लोग मिलकर किसी को धर्म, जाति, भाषा, लिंग, समुदाय या सोच के आधार पर मार डालते हैं, तो यह अपराध माना जाएगा। इसमें हर आरोपी को उम्रकैद या फांसी और जुर्माना हो सकता है।

धारा 117(4) – भीड़ द्वारा गंभीर चोट: अगर भीड़ उपरोक्त कारणों से किसी को गंभीर चोट पहुंचाती है, तो यह भी अपराध है। इसमें 7 साल तक की जेल और जुर्माना हो सकता है।

इन नए कानूनों से यह साफ हो गया है कि मॉब लिंचिंग अब सामान्य हत्या नहीं, बल्कि एक अलग गंभीर अपराध है, जिसकी सजा भी बहुत सख्त है।

 

 

इसे भी पढ़े :-हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान तेज, ‘गोरक्षा के नाम पर मॉब लिंचिंग के खिलाफ लायेंगे कानून’: नूंह विधायक

 

 

राज्य स्तर पर मॉब लिंचिंग रोकने के कानून

केंद्र सरकार के अलावा, कुछ राज्यों ने भी भीड़ हिंसा (मॉब लिंचिंग) को रोकने के लिए अपने-अपने खास कानून बनाए हैं। नीचे कुछ राज्यों के उदाहरण दिए गए हैं:

राजस्थान – लिंचिंग से सुरक्षा बिल, 2019

  • “लिंचिंग” और “भीड़” को साफ परिभाषित किया गया है।
  • अपराधी को उम्रकैद और ₹1 से ₹5 लाख तक का जुर्माना।
  • अभी तक राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है।

मणिपुर – भीड़ हिंसा से सुरक्षा बिल, 2018

  • यह ऐसा पहला राज्य कानून है।
  • धर्म, जाति, राजनीति आदि कारणों से की गई भीड़ हिंसा को अपराध माना गया है।
  • उम्रकैद तक की सजा हो सकती है।

झारखंड – भीड़ हिंसा और लिंचिंग रोकथाम बिल, 2021

  • सजा 3 साल से उम्रकैद तक,
  • ₹25 लाख तक जुर्माना,
  • संपत्ति जब्त भी की जा सकती है।
  • इसमें साजिश, उकसाने, रोकने या छिपाने वालों को भी सजा दी जाएगी।

पश्चिम बंगाल – लिंचिंग रोकथाम बिल, 2019

  • “भीड़” और “लिंचिंग” को परिभाषित किया गया है।
  • सजा 3 साल से उम्रकैद तक हो सकती है।
  • साथ में पीड़ित को मुआवजा देने की योजना भी शामिल है।

नोट: हालांकि इन राज्यों ने अच्छा कदम उठाया है, लेकिन कई बिल अभी राष्ट्रपति या केंद्र की मंजूरी का इंतज़ार कर रहे हैं, जिससे इन कानूनों को लागू करने में देरी हो रही है।

 

इसे भी पढ़े :- छत्तीसगढ़ में मॉब-लिंचिंग, दर्जनभर लोगों ने पीट पीटकर 2 लोगों को उतारा मौत के घाट, तीसरे की हालत गंभीर 

 

कानून के फायदे

  • साफ कानून: 2023 का नया कानून (BNS) अब भीड़ हिंसा को अलग अपराध मानता है और कड़ी सजा देता है।
  • कोर्ट की सख्ती: सुप्रीम कोर्ट के तहसीन पूनावाला फैसले में तेज़ सुनवाई, पुलिस पर निगरानी और पीड़ित को मुआवज़ा देने के आदेश दिए गए हैं।
  • राज्य कानून: कुछ राज्यों ने अपने-अपने कड़े कानून और जुर्माने बनाए हैं जो डर का माहौल बना सकते हैं।

 

 

चुनौतियां और कमियां

  • राज्य कानून लागू नहीं हो पाए: कई राज्य सरकारों ने बिल तो पास किए हैं, लेकिन राष्ट्रपति की मंजूरी या लागू होने में देर हो रही है।
  • लापरवाही और गलत कार्रवाई: कानून होने के बावजूद FIR में देरी या गलत धाराएं लगाई जाती हैं, जैसे मुरादाबाद और मंगलुरु केस में देखा गया।
  • सही आंकड़े नहीं मिलते: NCRB अब भीड़ हिंसा का अलग डेटा नहीं रखता, और राज्य आयोगों के पास भी पूरी जानकारी नहीं होती।
  • सामाजिक नफरत: अफवाह, नफरत भरी बातें और राजनीतिक दखल से कानून लागू करना और भी मुश्किल हो जाता है।

 

 

इसे भी पढ़े :-नाबालिग से शादी करने से क्या परिणाम होते हैं, जाने कहाँ प्रचलित है बाल विवाह

 

 

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

1. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश के लिए एक जैसे मुआवज़े के आदेश से इनकार किया (12 फरवरी 2025)

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो पूरे देश के लिए मॉब लिंचिंग में एक जैसा मुआवज़ा देने का नया कानून नहीं बनाएगा। कोर्ट ने कहा कि 2018 के तहसीन पूनावाला केस में जो निर्देश दिए गए थे (जैसे नोडल अफसर, तेज सुनवाई, मुआवज़ा) – वे पहले से ही लागू हैं और सभी राज्यों को उनका पालन करना चाहिए।

मुख्य बात: शिकायत करने वाले लोग अपने-अपने राज्य की हाई कोर्ट में जाकर समाधान पा सकते हैं।

2. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मुरादाबाद लिंचिंग केस में SIT जांच के आदेश दिए (3 जून 2025)

शाहीदीन कुरैशी की हत्या (दिसंबर 2024) के मामले में कोर्ट ने यूपी सरकार और केंद्र को नोटिस भेजा। कोर्ट ने कहा कि भीड़ हिंसा की सही धारा (धारा 103(2), BNS) लगनी चाहिए थी। साथ ही, ₹50 लाख मुआवज़े की मांग पर रिपोर्ट मांगी और लापरवाह अफसरों पर कार्रवाई के निर्देश दिए।

महत्व: कोर्ट ने साफ कहा कि लिंचिंग मामलों में कानून का सही इस्तेमाल होना जरूरी है।

 

3. कर्नाटक: मंगलुरु क्रिकेट मैच में हुई लिंचिंग पर तेज़ सुनवाई की मांग (27 अप्रैल 2025)

मंगलुरु में क्रिकेट मैच देखने आए एक दर्शक की भीड़ ने पीटकर हत्या कर दी। परिवार ने कोर्ट से फास्ट-ट्रैक कोर्ट, स्वतंत्र पुलिस जांच, और विशेष सरकारी वकील की मांग की। सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के आधार पर मुआवज़े की भी मांग की गई। तीन पुलिसवालों को लापरवाही पर सस्पेंड किया गया।

इसे भी पढ़ें:  क्या किसी को बार-बार कॉल करके धमकाना साइबर क्राइम है?

जरूरी बात: ये केस BNS लागू होने के बाद पहला बड़ा लिंचिंग केस माना गया।

 

4. सुप्रीम कोर्ट में देशभर में एक जैसे मुआवज़े की मांग पर सुनवाई (23 अप्रैल 2025)

IMPAR नाम की संस्था ने PIL दायर कर भीड़ हिंसा और नफरत से जुड़े अपराधों में एक जैसा मुआवज़ा देने की मांग की। कोर्ट ने केंद्र, सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से पूछा कि तहसीन पूनावाला निर्देशों के अनुसार मुआवज़ा योजना कितनी लागू हुई है।

क्यों जरूरी है: सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि मुआवज़ा किसी की मर्जी पर ना हो, बल्कि हर पीड़ित को बराबर मदद मिले।

निष्कर्ष

भारत के पास अब मॉब लिंचिंग में से निपटने के लिए मजबूत कानून हैं, जैसे BNS 2023 और सुप्रीम कोर्ट के सख्त निर्देश। कुछ राज्यों ने भी खास कानून बनाए हैं। इससे साफ है कि सरकार और अदालतें इस अपराध को बहुत गंभीर मानती हैं।

लेकिन सिर्फ कानून बनाना काफी नहीं है। असली ज़रूरत है कि पुलिस समय पर कार्रवाई करे, कोर्ट मामले जल्दी निपटाएं, सही आंकड़े इकट्ठे हों और लोगों को जागरूक किया जाए। तभी इन कानूनों का असली फायदा मिल सकेगा।

भीड़ द्वारा की गई हत्या सिर्फ एक जुर्म नहीं है, बल्कि ये हमारे संविधान में हर इंसान को दिए गए बराबरी, इज्जत और कानून की हिफाजत के हक पर सीधा हमला है। अगर हर नागरिक और अधिकारी की जवाबदेही तय हो, और कानून सख्ती से लागू हो, तभी हम कह पाएंगे, “हर किसी को कानून के तहत न्याय मिलेगा, न कि भीड़ के फैसले से।”

 

 

इसे भी पढ़े :-हाई कोर्ट एंटीसिपेटरी बेल की पिटीशन पर क्या विचार करने से मना कर सकता हैं?, जाने इसकी प्रक्रिया

 

 

FAQs

1. क्या भारत में मॉब लिंचिंग के खिलाफ अलग कानून है?

हां, 2023 में बना भारतीय न्याय संहिता (BNS) अब मॉब लिंचिंग को अलग अपराध मानता है।

2. मॉब लिंचिंग में क्या सजा हो सकती है?

अगर भीड़ हत्या करती है तो उम्रकैद या फांसी और जुर्माना हो सकता है।

3. क्या सुप्रीम कोर्ट ने मॉब लिंचिंग पर गाइडलाइन दी हैं?

हां, तहसीन पूनावाला केस (2018) में सुप्रीम कोर्ट ने कई सख्त निर्देश दिए थे।

4. क्या राज्य सरकारों ने भी लिंचिंग रोकने के लिए कानून बनाए हैं?

हां, राजस्थान, झारखंड, मणिपुर और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं।

5. क्या पीड़ित को मुआवज़ा मिलता है?

हां, कोर्ट के निर्देश हैं कि पीड़ित को इलाज, कानूनी मदद और मुआवज़ा मिलना चाहिए।

 

 

छत्तीसगढ़ में दुष्कर्म पीड़िताओं को अब मिलेगी राहत, 40 करोड़ रुपये मुआवजा वितरण की प्रक्रिया शुरू

Join WhatsApp

Join Now