दागी नेताओं को हटाने वाला बिल अटका! NDA ने पार किए दो रोड़े, तीसरे पर पेच फंसा

नई दिल्ली
लोकसभा ने प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री की गंभीर अपराध में गिरफ्तारी और 30 दिन तक न्यायिक हिरासत में रखे जाने पर उन्हें पद से हटाने के प्रावधान वाले 130वें संविधान संशोधन विधेयक तथा दो अन्य विधेयकों को विपक्ष के भारी विरोध और हंगामे के बीच बुधवार को संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेज दिया है। ऐसी चर्चा है कि संसद के शीतकालीन सत्र से पहले JPC इस बिल पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा अध्यक्ष को सौंप देगी। उसके बाद इस बिल को पारित कराने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी।

चूंकि यह संविधान संशोधन बिल है, इसलिए इसे पारित कराने की प्रक्रिया में तीन बड़ी अचड़नें हैं। नियमानुसार इसे संसद के दोनों सदनों से विशेष बहुमत के साथ पारित कराया जाना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन बिल को संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में दो स्तरों पर बहुमत चाहिए। पहला, कुल सदस्यों का बहुमत और दूसरा, उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत। तीसरी अड़चन आधे से अधिक राज्यों की विधानसभाओं से भी इस बिल को पारित कराना होगा।

संसद में दोनों सदनों में NDA की ताकत क्या?
अब बात संसद में एनडीए के संख्या बल की और इस संशोधन विधेयक को पारित कराने में आने वाली अड़चन की। चूंकि, संसद में दो स्तर पर बहुमत चाहिए जिसमें पहला सदन की कुल सदस्य संख्या का 50% से अधिक मत जरूरी है, तो इस अड़चन को सरकार आसानी से पार कर लेगी क्योंकि लोकसभा में 542 सदस्य हैं। ऐसे में 50 फीसदी मत यानी बिल के पक्ष में 272 सांसदों का वोट चाहिए, जबकि मौजूदा समय में उसके पास लोकसभा में 293 सांसद हैं। इसी तरह राज्यसभा में अभी कुल सदस्यों की संख्या 239 है। साधारण बहुमत के लिए 120 सांसदों के मत की जरूरत होगी, जो आसानी से पूरी हो जाएगी क्योंकि राज्यसभा में NDA के अभी 132 सांसद हैं।

दो तिहाई बहुमत में बड़ी अड़चन
अब बात दो तिहाई बहुमत की, जो दूसरी और सबसे अहम अड़चन है। लोकसभा में दो तिहाई बहुमत का आंकड़ा 362 है, जबकि राज्यसभा में यह आंकड़ा 160 है। चूंकि लोकसभा में NDA के सांसदों की संख्या सिर्फ 293 है और राज्यसभा में सिर्फ 132 है तो इस मामले में दोनों ही सदनों में यह बिल अटक सकता है। यानी लोकसभा में कुल 69 सांसद और राज्यसभा में कुल 28 सांसदों के समर्थन की दरकार सरकार को होगी।

बिना विपक्षी समर्थन के ⅔ बहुमत मिलना मुश्किल
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि सरकार के पास संसद के दोनों ही सदनों में दो तिहाई बहुमत हासिल नहीं है। दूसरी तरफ विपक्षी इंडिया गठबंधन इस बिल का काला कानून बताकर इसका जबर्दस्त विरोध कर रहे हैं। अगर सरकार दोनों ही सदनों में नवीन पटनायक की बीजू जनता दल, जगनमोहन रेड्डी की YRCPC और निर्दलियों का भी समर्थन हासिल कर लेती है, तब भी दो तिहाई बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पाएगी। ऐसे में इस बिल का संसद से पारित होना नामुमकिन लगता है।

विधानसभाओं से भी पारित होना चाहिए बिल
इस बिल को पारित कराने की तीसरी बड़ी जरूरत आधे से अधिक राज्य विधानसभाओं से पारित कराना है। चूंकि भारत राज्यों का संघ है, इसलिए ऐसे संविधान संशोधन बिल का 50 परसेंट राज्यों की असेंबली से पास होना जरूरी है। इस मामले में एनडीए को कोई दिक्कत नहीं होगी क्योंकि आधे से ज्यादा राज्यों में एनडीए की सरकार है।

ऐसे में और क्या संभावना?
एक संभावना यह भी बन रही है कि अगर विपक्ष संयुक्त संसदीय समिति में शामिल होता है और उसके सुझावों को सरकार मान लेती है, जिसमें यह कहा जा सकता है कि न्यायिक हिरासत की बजाय सजा होने पर ही इस्तीफे को अनिवार्य बनाया जाए, तब संभावना बन सकती है कि विपक्षी दल उसका समर्थन करें। अन्यथा इस संशोधन बिल के पारित होने की संभावना कम ही है। बता दें कि अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर किसी भी संसद या विधानसभा सदस्य की सदस्यता स्वत: ही समाप्त हो जाती है और उसे पद से इस्तीफा देना पड़ता है।

 

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