डिप्टी कलेक्टर ने संविधान को साक्षी मानकर की शादी

थाईलैंड घूमने गए और बौद्ध मंदिर में ही विवाह प्रक्रिया संपन्न

बैतूल : आमतौर पर लोग वैवाहिक समारोह के जरिए अपनी खुशियों का इजहार करते हुए धूम-धड़ाका करने से नहीं चूकते मगर बैतूल जिले की उप जिलाधिकारी (डिप्टी कलेक्टर) निशा बांगरे के लिए इस सबका कोई मायने नहीं है। उनके लिए सबसे ऊपर ‘संविधान’ है।

निशा ने अपने मित्र सुरेश अग्रवाल के साथ बैंकॉक में गणतंत्र दिवस के मौके पर संविधान को साक्षी मानकर जीवन एक साथ गुजारने का संकल्प लिया।

सामान्य परिवार से नाता रखने वाली निशा के जीवन में संविधान की खास अहमियत है, वे मानती हैं कि यह दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान है जो अनेकता में एकता का संदेश देने के साथ सभी को बराबरी से रहने का हक देता है। यही कारण है कि उन्होंने अपने मित्र और गुड़गांव के सुरेश अग्रवाल के साथ गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत के संविधान को साक्षी मानकर बैंकॉक में विवाह रचाया।
बालाघाट, तहसील किरनापुर के एक छोटे से ग्राम चिखला की रहने वाली निशा के माता-पिता का आरंभिक जीवन काफी संघर्षो से भरा रहा था। उनके पिता शिक्षक बने और अब एक्सीलेंस स्कूल में प्राचार्य हैं। यह उनके समाज की पहली पीढ़ी थी, जिसने इतनी पढ़ाई की थी और ये मुकाम हासिल किया।
निशा बताती हैं कि उन्होंने इंजीनियरिग की पढ़ाई के बाद गुड़गांव में नौकरी की। पहली बार पीएससी की परीक्षा में डीएसपी के पद पर उनका चयन हुआ। दूसरी बार में डिप्टी कलेक्टर के लिए चयन हुआ और बैतूल में पदस्थापना मिलीं।

डिप्टी कलेक्टर ने संविधान को साक्षी मानकर की शादी
निशा जब गुड़गांव में नौकरी कर रही थीं, तभी उनकी सुरेश अग्रवाल से मित्रता हुई। पिछले दिनों दोनों के परिवार साथ में थाईलैंड घूमने गए और बौद्ध मंदिर में ही विवाह प्रक्रिया संपन्न की। इन दोनों ने संविधान को साक्षी मानकर विवाह रचाया और एक दूसरे को वरमाला पहनाई।

निशा बांगरे ने बताया कि उन्हें बचपन से भारत के संविधान के प्रति काफी आस्था और अटूट विश्वास रहा है। उनका मानना है कि यह दुनिया का बेहतरीन संविधान है जो अनेकता में एकता का संदेश देने के साथ ही सभी वर्गो के मौलिक अधिकारों को अक्षुण्ण बनाए रखता है। निशा बांगरे के मुताबिक, उनका मुख्य ध्येय यही है कि सभी वर्गो के लोग संविधान की रक्षा करें।

निशा ने संविधान को साक्षी मानकर विवाह रचाने के बजह बताते हुए कहा कि वह समाज को एक संदेश देना चाहती हैं कि हजारों शादियां अनेक पद्धतियों और अग्निकुंड के फेरे लेकर संपन्न होने के बावजूद टूट जाती हैं और दोनों परिवार कोर्ट कचहरी के वर्षो चक्कर काटते रहते हैं। उन्हें खुशी है कि उनके पति ने भी संविधान के प्रति अटूट विश्वास दर्शाया। इससे अभिभूत होकर उन्होंने संविधान को साक्षी मानकर शादी का निर्णय लिया।

युवतियों को संदेश देते हुए निशा कहती हैं कि पुरुषवादी मानसिकता में ढलने के बजाय खुद स्वतंत्र होकर अपने भविष्य का निर्णय लेकर समाज के लिए प्रेरणा बनें।(sakshi smachar)

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