बेटे की जुबानी पिता की तिल-तिल मरने की कहानी, लाश के साथ बिताए 13 घंटे

Johar36garh (Web Desk)| कोरोना महामारी (Corona Epidemic) से पूरा देश त्रस्त है. दिल्ली-एनसीआर में भी कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया है. कोरोना संकट के दौर में हर दिन ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो यह बताने के लिए काफी हैं कि कोरोना संक्रमित मरीजों को किन-किन परेशानियों से होकर गुजरना पड़ रहा है. दिल्ली से सटे होने के बाद भी गाजियाबाद और नोएडा के अस्पतालों में कोरोना संक्रमितों को भर्ती करने की तो दूर संक्रमित मरीजों के शव के साथ लापरवाही बरती जा रही है. पिछले दिनों यूपी के गाजियाबाद और नोएडा में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई जो मानवता को शर्मसार कर देती है. दो दिन पहले ही गौतमबुद्ध नगर जिले में एक घटना ने स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन की पोल खोल कर रख दी है.

नोएडा सेक्टर 82 के केंद्रीय विहार में रहने वाले एक मरीज का 8 जून को शारदा हॉस्पिटल ने कोविड सैंपल लेकर उसे घर भेज दिया था. मरीज की 9 जून की सुबह 6 बजे घर पर ही मौत हो गई. दोपहर 3 बजे मरीज की रिपोर्ट पॉजिटिव आने से हड़कंप मच गया. इस बीच मरीज की डेड बॉडी करीब 13 घंटे घर पर रखी रही. जब इस घटना की जानकारी सीएमओ को लगी तो सीएमओ खुद 7 बजे पहुंच कर बॉडी उठवाई.
बेटे की जुबानी पिता की तिल-तिल मरने की कहानी, लाश के साथ बिताए 13 घंटे
दरअसल इस पूरी घटना के कई आयाम हैं. मृतक बुजुर्ग के बेटे मनोज कुमार पटेल ने इस दर्दनाक कहानी को बयां किया है. ये न केवल डराती है बल्कि उनकी आपबीती सुनने के बाद ये भी पता चलता है कि इस देश में स्वास्थ्य सेवा सचमुच भगवान भरोसे है.

घटना से पूरी तरह टूट चुके मनोज ने पड़ोसियों से अपनी आपबीती शेयर करते हुए लिखा है, ‘मेरे जानने वालों को मैं यह बताना चाहता हूं कि अगर आप कोरोना से संक्रमित होते हैं तो इस बात का आप यकीन कर लें कि कोई भी शख्स आपकी मदद को आगे नहीं आएगा. मनोज कहते हैं, मेरे पिताजी को 3 से 5 जून के बीच हल्का और तेज बुखार महसूस हुआ. 6 जून को मैंने उन्हें दिखाया तो डॉक्टर ने टाइफाइड समेत तीन टेस्ट लिख दिए. हमने लाल पैथ लैब में सभी टेस्ट कराने के डेट ले लिए. हमारा आवेदन स्वीकार करने और सैंपल एजेंट एसाइन करने के बावजूद उन्होंने सभी टेस्ट कैंसिल कर दिए और कारण दिया मरीज टेस्ट कराने को इच्छुक नहीं है. 7 जून के मैंने याथार्थ में बात की लेकिन वहां के डॉक्टर ने कहा यहां संभव नहीं आप जेपी हॉस्पिटल चले जाइए.’

मनोज अपनी आपबीती बताते हुए आगे कहते हैं, ‘जेपी अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टरों को कोरोना का अंदेशा हुआ. डॉक्टरों ने यह भी महसूस किया कि पिताजी को सांस लेने में तकलीफ हो रही है. पिताजी का इलाज करने की बजाय उन्होंने हमें ग्रेटर नोएडा के Government Institute of Medical Sciences (GIMS) रेफर कर दिया, जबकि तब पिताजी को इलाज की सख्त जरूरत थी. हमें यह बताया गया कि जेपी हॉस्पिटल इस तरह के केस हैंडल नहीं कर सकता. आप कोई सरकारी अस्पताल जाए. हमें जल्द से जल्द पिताजी का टेस्ट करवाना था इसलिए हमारे पास प्राइवेट अस्पताल जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था.

पटेल कहते हैं, ‘मैंन सुना था शारद हॉस्पिटल में कोरोना का टेस्ट किया जाता है. 8 जून को 11 बजे सुबह हम शारदा हॉस्पिटल पहुंचे. हमने टेस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया. वहां बाहर में ही टेस्ट लिया जा रहा था. हमारे पिताजी की हालत बेहद खराब हो चुकी थी इस स्थिति में भी टेस्ट के लिए उन्हें भरी गर्मी में घंटों बैठाया गया. सैंपल देने के बाद हम इमरजेंसी और ओपीडी की तरफ गए, जहां उन्होंने कहा, कोरोना टेस्ट आने के बाद ही हम आपकी कोई मदद कर सकते हैं. कोरोना या किसी अन्य जानकारी के लिए आप कल सुबह 9 बजे ओपीडी आ जाइए.

अगले सुबह हॉस्पिटल पहुंचे यहां कोई प्राइवेट जैसी बात नहीं दिखी. हमारे पिताजी के लेवल-3 पाए जाने के बावजूद इमरजेंसी के तहत उनका इलाज नहीं किया गया. 9 जून की सुबह 6 बजे पिताजी को सांस लेने में तकलीफ होने लगी हम, यूपी हेल्प लाइन ,कोविड हेल्प लाइन समेत सरकार द्वारा दिए गए सारे नंबर पर बात करने की कोशिश की लेकिन कोई रिस्पांस नहीं मिला.

कोरोना हेल्पलाइन नंबर भी काम न आए
कहीं से एंबुलेंस नहीं आने के कारण 6 बजकर पांच मिनट पर मेरे पिताजी ने अंतिम सांस ली. कोरोना का टेस्ट अभी नहीं आया था. लेकिन संक्रमण का शक होने की वजह से कोई हमारी हेल्प को नहीं आ रहा था. बहुत कोशिश करने के बाद मैंने साढे पांच बजे पिताजी का कोविड रिपोर्ट मिला. साढे सात बजे के आसपास किसी तरह एंबुलेंस हमें मिला मैंने और हमारी पत्नी ने पीपीई कीट पहनकर बॉडी कवर की हमारी मदद को एंबुलेंस ड्राइवर के अलावा कोई भी नहीं था. हमने किसी तरह पिताजी का अंतिम संस्कार किया और अब हम अपने पूरे परिवार के कोरोना टेस्ट के लिए इंतजार कर रहे हैं. (News18)

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