मुंबई
महाराष्ट्र की एक स्पेशल कोर्ट ने एक दिव्यांग छात्रों के लिए बनाए गए एक स्कूल के पूर्व प्राचार्य और शिक्षक को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराते हुए पांच साल की सजा सुनाई है। प्राचार्य और शिक्षक के ऊपर आरोप थे कि पद पर रहते हुए वह बोलने और सुनने में असमर्थ छात्राओं को अपने ऑफिस में बुलाते थे और फिर उनके साथ यौन उत्पीड़न करते थे। कोर्ट ने शिक्षकों को जीवन का मार्गदर्शक बताते हुए इसे बहुत बड़ा विश्वासघात करार दिया, और आरोपियों के 5 साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई।
विशेष न्यायाधीश सत्यनारायण आर नवंदर ने फैसला सुनाने के पहले कहा, "स्कूल एक पवित्र संस्था होती है। बच्चे अपने शिक्षक पर भरोसा करते हैं और उन्हें जीवन का मार्गदर्शक मानते हैं। यदि इस विश्वास के साथ विश्वासघात किया जाए और जब बच्चे के लिए भगवान समान व्यक्ति ही यौन उत्पीड़न करे तो इसमें कोई संदेह नहीं कि पीड़ित जीवन भर के लिए मानसिक आघात झेलेंगे।
अदालत ने कहा कि उस स्कूल में सभी नाबालिग लड़कियां थीं, वह सुनने और बोलने में अक्षम थीं। स्कूल के प्राचार्य और शिक्षकों को ही उनके संरक्षण की जिम्मेदारी मिली हुई थी। आरोपियों ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए बच्चों की शारीरिक अक्षमता का अनुचित लाभ उठाया। इसके बाद अदालत ने आरोपी 62 वर्षीय लॉर्डु पापी गाड़े रेड्डी (पूर्व प्राचार्य) और 61 साल के दत्तकुमार भास्कर पाटिल को पॉस्को अधिनियम की धारा 10 और भारतीय दंड संहिता की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया।
क्या था पूरा मामला?
यह पूरा मामला 2013 और 2014 के बीच का था। इसी बीच रेड्डी और भास्कर यहां पर प्राचार्य और शिक्षक के रूप में पदस्थ थे। अभियोजन पक्ष के अनुसार वह छात्राओं को अपने कक्ष में बुलाते और फिर उन्हें गले लगाकर चूमते थे, जबकि दूसरा शिक्षक उनकी अश्लील तस्वीरें खींचता था और उनके साथ अनुचित तरीके से छेड़छाड़ करता था।
इनके यह काले कारनामे करीब दो सालों तक चलते रहे। इसके बाद एक पीड़ित ने इसके बारे में अपने परिजनों को बताया, जिससे यह मामला खुला। एक के सामने आने के बाद बाकी छात्राओं ने भी अपने साथ हुई आपबीती को बताया। क्योंकि यह सभी छात्राओं बोलने में असमर्थ थीं और नाबालिग थीं इसलिए इनके बयान लेते समय भाषा विशेषज्ञों की भी मदद ली गई, जिन्हें अदालत ने ठोस माना। मामले के शुरू होने के कुछ समय के बाद मुख्य शिकायतकर्ता और उसका परिवार अपनी शिकायत से मुकर गया। हालांकि अदालत ने दूसरी छात्राओं के आधार पर इस मुकदमे को जारी रखा।
अदालत ने अभिभावकों की भी की आलोचना
अदालत ने अपने इस फैसले में माता-पिता और संस्थानों की इस प्रवृ्त्ति की भी आलोचना की कि वह छात्राओं की शिकायतों को मामूली समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, खासकर तब जब शिक्षक समाज में ऊंचा दर्जा रखते हों। इस फैसले में अदालत ने प्रत्येक दोषी को पांच साल की सजा के अलावा 25 हजार रुपए का जुर्माना भी भरने का आदेश दिया। इसके अलावा जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को भी निर्देश दिया कि पीड़ित मुआवजा योजना के तहत पीड़ितों को अतिरिक्त मुआवजा दिया जाए, क्योंकि जुर्माने की राशि पीड़ितों की पीड़ा की भरपाई करने के लिए अपर्याप्त है।