जहरीली हवाएं लोगों को गठिया जैसी बीमारी भी दे सकती हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि दिल्ली के प्रदूषण से करीब 20 फीसदी लोग गठिया जैसी बीमारी की चपेट में आ गए हैं।
वहीं 76 फीसदी मरीजों के सीरम में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस मिला है। इसका मतलब शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स और एंटीऑक्सीडेंट के बीच असंतुलन से है। इससे कई तरह के रोग होने की आशंका बढ़ जाती है।
विश्व आर्थराइटिस दिवस के मौके पर एम्स में शुक्रवार को हुई प्रेस कान्फ्रेंस में विभागाध्यक्ष डॉ. उमा कुमार ने बताया कि हाल ही में प्रदूषण और गठिया के बीच संबंध जानने के लिए 350 लोगों पर अध्ययन किया गया। ये दिल्ली में 10 वर्ष से भी ज्यादा समय से रह रहे हैं। इनमें से करीब 20 फीसदी यानी 70 मरीजों में प्रदूषण से गठिया होने की पुष्टि हुई है।
बाकी 76 फीसदी मरीजों में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस पाया गया है। उन्होंने बताया कि पीएम 2.5 और उससे सूक्ष्म कण शरीर में पहुंचने के बाद रक्त में मिलकर कई तरह के दुष्प्रभाव सामने लाते हैं। इन्हीं में से कई जहरीले कण इंसान के जोड़ों पर भी वार करते हैं।
इनकी वजह से वे गठिया जैसे रोग की चपेट में आ जाते हैं। उन्होंने बताया कि इससे पहले भी इसी तरह का अध्ययन हुआ था। इसमें साबित हो चुका है कि प्रदूषण की वजह से जोड़ों में दर्द, गठिया, सूजन और मांसपेशियों में दर्द इत्यादि की परेशानी होती है।
63 फीसदी स्कूली बच्चों की मांसपेशियों में दर्द
एम्स के डॉक्टरों ने दिल्ली के स्कूली बच्चों को लेकर भी एक अध्ययन किया है। दक्षिणी दिल्ली के 10 स्कूलों के 1600 बच्चों पर किए गए इस अध्ययन के अनुसार इनमेें से 63 फीसदी को मांसपेशियों के दर्द की शिकायत है। इसके पीछे बड़ी वजह बस्ते का अतिरिक्त भार और मोबाइल का इस्तेमाल आदि हैं।
अप्रैल 2018 से मार्च 2019 के बीच किए इस अध्ययन में शामिल बच्चों की आयु 10 से 19 वर्ष तक थी। कई बच्चों को अध्ययन के दौरान लंबे समय से दर्द होने की परेशानी मिली। कई को कमर और कूल्हे में दर्द की समस्या थी।
डॉक्टरों के अनुसार, बच्चों को पौष्टिक आहार न मिलने और उनकी जीवनशैली संतुलित न होने के कारण तकलीफें बढ़ रही हैं। एक सप्ताह में आपका बच्चा पांच दिन दो-दो घंटे तक फोन या टीवी देखता है तो उसे इस तरह की परेशानी हो सकती है।