नई दिल्ली
खेल मंत्री मनसुख मांडविया ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) एक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय खेल महासंघ (एनएसएफ) नहीं है। उन्होंने लंबे समय से चली आ रही स्थिति को दोहराया जिसके अगले साल नए राष्ट्रीय खेल संचालन अधिनियम के लागू होने के बाद बदलने की उम्मीद है।
मांडविया तृणमूल कांग्रेस की कोलकाता दक्षिण की प्रतिनिधि माला रॉय के एक सवाल का जवाब दे रहे थे। रॉय ने पूछा था कि क्या सरकार बीसीसीआई जैसे बड़े खेल संगठनों और पैसे की कमी से जूझ रहे अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) को ‘ठीक से और सुचारू रूप से चलाने’ के लिए उनका नियंत्रण अपने हाथ में लेने का इरादा रखती है।
मांडविया ने दोहराया कि एनएसएफ से ‘अच्छे प्रबंधन तरीकों’ का पालन करने की उम्मीद की जाती है। मांडविया ने कहा, ‘‘भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) को राष्ट्रीय खेल महासंघ (एनएसएफ) के रूप में मान्यता नहीं मिली है।’’
राष्ट्रीय खेल संचालन अधिनियम इस साल अगस्त में पारित हुआ था और इसके नियम जल्द ही अधिसूचित किए जाएंगे। मांडविया ने अगले साल की शुरुआत में इस अधिनियम को पूरी तरह से लागू करने का वादा किया है।
इसमें एक राष्ट्रीय खेल बोर्ड (एनएसबी) का प्रावधान है जो जवाबदेही की एक सख्त प्रणाली बनाएगा और सभी एनएसएफ को केंद्र सरकार से कोष पाने के लिए एनएसबी से मान्यता लेनी होगी। बीसीसीआई अब तक एक मान्यता प्राप्त एनएसएफ नहीं है क्योंकि यह सरकार के कोष पर निर्भर नहीं है।
हालांकि जब नया कानून लागू होगा तो बीसीसीआई को खुद को एनएसएफ के तौर पर पंजीकृत कराना होगा क्योंकि क्रिकेट एक ओलंपिक खेल बन गया है जो 2028 खेलों में टी20 प्रारूप में पदार्पण करने वाला है।
मंत्रालय ने बोर्ड को सूचना का अधिकार अधिनियम से संबंधित प्रावधानों के मामले में पहले ही कुछ राहत दी है जो नए अधिनियम के तहत एनएसएफ पर लागू होंगे।
इसने अधिनियम में आरटीआई से संबंधित प्रावधान में संशोधन किया है और केवल उन्हीं महासंघों को इसके दायरे में रखा है जो सरकारी अनुदान और सहायता पर निर्भर हैं।
सूचना का अधिकार कानून बीसीसीआई के लिए एक मुश्किल मुद्दा रहा है जिसने लगातार इसके दायरे में आने का विरोध किया है क्योंकि बोर्ड अधिकांश अन्य एनएसएफ की तरह सरकारी कोष पर निर्भर नहीं है।
सोमवार को लोकसभा में मांडविया ने यह भी कहा कि एक करोड़ रुपये से अधिक का वार्षिक अनुदान प्राप्त करने वाले एनएसएफ के खाते भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) द्वारा ऑडिट के अधीन हैं।