छत्तीसगढ़ी हृदय को छू लेने वाली भाषा, आठवीं अनुसूची में शामिल कराने करूंगी प्रयास : राज्यपाल

रायपुर। मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी समिति द्वारा जेएन पाण्डेय स्कूल में आयोजित चर्चा-परिचर्चा कार्यक्रम के समापन सत्र में प्रदेश की राज्यपाल अनुसुईया उइके शामिल हुई। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल कराने और उसके विकास और संवर्धन के लिए वे आगे कार्य करेंगी। मीडिया से चर्चा के दौरान राज्यपाल उइके ने कहा कि  वे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से भी इस विषय में चर्चा करेंगी कि वे इस विषय पर विधानसभा में विधेयक लाए। साथ ही केंद्र में भी इस प्रस्ताव को राष्ट्रपति तक और केंद्र सरकार तक इस विषय को पहुंचाएंगी।  उन्होंने कहा कि मोर चिन्हारी संस्था के द्वारा जो प्रयास किया जा रहा है, मैं भी उसमें शामिल हूं।

राज्यपाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ी  हृदय को छू  लेने वाली भाषा है, बड़ी मिठास है इसमें यह भावनात्मक रूप से जोड़ने वाली भाषा है। राज्यपाल ने प्रदेशवासियों से कहा कि अपनी मातृभाषा पर गर्व करें और  देश में जहां भी जाएं अपनी भाषा को जरूर बोलें।  पहचान अपनी छत्तीसगढ़ी भाषा के माध्यम से पूरे भारत में बनाएं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ी यहां की जनभाषा, राजभाषा और मातृभाषा है। छत्तीसगढ़ कला और संस्कृति की दृष्टि से भी काफी समृद्ध है। छत्तीसगढ़ी भाषा में बहुत मिठास और अपनत्व है। छत्तीसगढ़ी को सुुनते वक्त ऐसा लगता है कि जैसे मधुर शब्दों का रसपान कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ी गीतों के मीठे बोल कान से सीधे हृदय तक पहुंच जाते हैं। छत्तीसगढ़ी भाषा अत्यंत सहजता और सरलता से जन-जन में बोली जाती है। खुशी की बात है कि 28 नवंबर 2007 को छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया था। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं साहित्यकार पंडित सुंदरलाल शर्मा ने छत्तीसगढ़ी भाषा को प्रतिष्ठा दिलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। जगन्नाथ प्रसाद भानु, श्यामलाल चतुर्वेदी, केयर भूषण जैसे अन्य साहित्यकारों ने भी अपनी रचनाओं से छत्तीसगढ़ी साहित्य को सींचा है और उसका विकास करके आगे बढ़ाया है। छत्तीसगढ़ी को अपने शब्दों में पिरो कर छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना की रचना डॉक्टर नरेंद्र देव वर्मा ने की, जिसे राजकीय गीत घोषित किया गया।

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