जयपुर
राज्यपाल श्री हरिभाऊ बागडे ने कहा कि चातुर्मास आत्मशुद्धि, संयम और सामाजिक सद्भाव का विशेष काल है, जिसमें साधु-संत एक स्थान पर ठहरकर साधना, ध्यान और तपस्या करते हैं तथा समाज को नैतिक मूल्यों की शिक्षा देते हैं। राज्यपाल श्री बागडे मंगलवार को आध्यात्मिक चातुर्मास महोत्सव समिति भीलवाड़ा के तत्वावधान में सुभाष नगर स्थित जैन स्थानक में चातुर्मासिक मंगल प्रवेश के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में आमजन को संबोधित कर रहे थे।
राज्यपाल ने कहा कि जैन धर्म जीवदया, अहिंसा और आत्मशुद्धि का प्रतीक है तथा चातुर्मास के माध्यम से इन मूल्यों को जनमानस तक पहुँचाया जाता है। उन्होंने कहा कि सच्चा साधु वही है जो समाज के कल्याण के लिए कार्य करता है और दूसरों के हित में किया गया कार्य ही सच्ची सिद्धि है। यह परंपरा भगवान महावीर के काल से चली आ रही है, जिसका उद्देश्य समाज में नैतिक जागरूकता और आध्यात्मिक चेतना जागृत करना है।
राज्यपाल श्री बागडे ने कहा कि चातुर्मास के दौरान दिए जाने वाले प्रवचन व्यक्ति के अंतर्मन को जागृत करते हैं और समाज में सकारात्मक सोच का संचार करते हैं। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति को मिटाने के अनेक प्रयास इतिहास में हुए, लेकिन इसकी गहराई और मूल्यों के कारण यह संस्कृति आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है।
राज्यपाल ने नवीन शिक्षा नीति का उल्लेख करते हुए कहा कि यह नीति बच्चों के बौद्धिक और शारीरिक विकास के साथ-साथ उनके नैतिक एवं सांस्कृतिक मूल्यों के संवर्धन पर बल देती है। उन्होंने कहा कि नवीन शिक्षा नीति के माध्यम से ऐसे शिक्षाविद तैयार होंगे, जो आधुनिक ज्ञान के साथ भारतीय सांस्कृतिक विरासत को भी आत्मसात करेंगे। राज्यपाल श्री बागड़े ने मंच पर विराजित जैन साध्वियों से आशीर्वाद प्राप्त किया और उनके द्वारा समाज को दिए जा रहे आध्यात्मिक मार्गदर्शन की सराहना की।