जलती शव के पास रखे केले को खाया बच्चों ने, 3 की हुई मौत, जाँच में जुटी पुलिस 

नूरगंज पूर्वी गांव में 24 घंटों के अंदर तीन बच्चों की मौत हो गई थी। ये बच्चे गंगा किनारे गए थे। बताया जा रहा है कि वहां अधजली चिता के पास सिंदूर लगे केले पड़े थे। बच्चों ने इन केलों को उठाकर खा लिया था। इसके बाद उनकी तबियत बिगड़ती चली गई थी।

बदायूं के उझानी कोतवाली क्षेत्र के नूरगंज पूर्वी गांव में रहस्यमय हालात में सगे भाई-बहन समेत तीन बच्चों की मौत के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है। रविवार देर शाम स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मौके पर जाकर जांच की। मृत बच्चों के परिजनों से बात कर हालात के बारे में जानकारी की। टीम को बताया गया कि बच्चों ने चिता के पास से सिंदूर लगा केला उठाकर खा लिया था। इसके बाद ही उनकी हालत बिगड़ती चली गई। 24 घंटों में तीनों की मौत हो गई।

कटरी के गांव नूरगंज पूर्वी में 24 घंटे के दौरान नन्हे लाल का सात वर्षीय बेटा अमित, पांच साल की बेटी बबिता और नन्हे की बहन रूपवती के आठ साल के बेटे सोनू की मौत हो गई थी। तीनों एक अन्य बच्चे के साथ बृहस्पतिवार सुबह घूमते हुए गंगा किनारे एक अधबुझी चिता के पास पहुंच गए थे। वहां से लौटने के बाद उनकी तबियत बिगड़ गई थी।

रविवार देर शाम जांच के लिए नूरगंज पहुंची स्वास्थ्य विभाग की टीम में शामिल चिकित्साधीक्षक राजकुमार गंगवार, कछला के चिकित्साधिकारी महेश प्रताप सिंह और नथन सिंह को नन्हे ने बताया कि चिता के पास सिंदूर लगे करीब आधा दर्जन केले पड़े थे। बच्चों ने उन्हें उठाकर खा लिया था। इसके बाद घर लौटने पर बच्चे अजीबोगरीब हरकतें करने लगे। तीनों बच्चों ने पहले सिर में दर्द भी बताया, फिर उन्हें बुखार आ गया था।

चौथा बच्चा पूरी तरह स्वस्थ
चिकित्साधीक्षक गंगवार समेत स्वास्थ्य कर्मियों ने ग्रामीणों से भी जानकारी की। अधिकतर ग्रामीणों ने यही दोहराया। चिकित्साधीक्षक ने बताया कि मृतक सोनू के पिता महेश से भी फोन पर बात हुई है। महेश बरेली में आंवला क्षेत्र के गांव गोंटिया निवासी हैं। चौथा बच्चा भी नन्हे के परिवार का है, लेकिन वह पूरी तरह स्वस्थ है। बता दें कि अमित और सोनू की शुक्रवार तो बबिता की शनिवार शाम मौत हो गई थी। चिकित्साधीक्षक ने जांच रिपोर्ट सीएमओ समेत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को भेज दी है।

स्वास्थ्य विभाग की टीम में शामिल चिकित्साधीक्षक राजकुमार गंगवार और चिकित्साधिकारी महेश प्रताप सिंह ने अमित और बबिता के पिता नन्हे से यह भी पूछा कि बीमार बच्चों को लेकर वह कछला या फिर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर क्यों नहीं लाए। जवाब में नन्हे का कहना था कि बच्चों की हालत बिगड़ने पर उन्हें जो उचित लगा वही किया। पोस्टमार्टम कराके वह क्या करते।

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