Thursday, November 21, 2024
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आज ही के दिन डॉ. अम्बेडकर ने जलाई थी मनुस्मृति, जाने क्या थी वजह

ऐसी क्या वजहें रही होंगी जो आज से लगभग 96 साल पहले आज ही के दिन 25 दिसम्बर 1927 को बाबासाहेब डॉ भीमराव आंबेडकर को पहली बार मनुस्मृति का प्रतीकात्मक रूप से दहन करना पड़ा? उस दौर में भारतीय समाज में जो कानून चल रहा था वह मनुस्मृति के विचारों पर आधारित था. यह एक ब्राह्मणवादी, पुरुष सत्तात्मक, भेदभाव वाला कानून था, जिसमें इंसान को जाति और वर्ग के आधार पर बांटा गया था. आइए जानते हैं जिन व्यवस्थाओं के प्रति बाबासाहेब आंबेडकर को विरोध दर्ज करना पड़ा, उसके पीछे क्या कारण रहे होंगे?

हजारों वर्षों से देश जातिवाद का दंश झेल रहा है जो आज के इस आधुनिक दौर में और भी विकराल रूप लेता दिखाई पड़ रहा है. महिलाओं के अधिकारों की बात हो या वर्ण व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर माने जाने वाले शूद्र की, ऊंची जातियों को इसमें अपना स्वामित्व ही क्यूं नजर आता रहा? क्यूं आज के इस वैश्विक दौर मे हमारा देश और पिछड़ता चला जा रहा है? जहां मॉब लिंचिंग के बहाने जाति विशेष को निशाना बनाया जा रहा है. क्या यह सब अचानक ही हो रहा है या इसके पीछे कुछ मंशाएं काम कर रही हैं? या हम इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि मनुष्य-मनुष्य न होकर सिर्फ जाति रूपी कार्ड दिखाई देने लगा है जो सिर्फ वोट के समय खेला जाता है.

जब से केंद्र की सत्ता में भाजपा की सरकार आई है ऐसा क्यूं है कि संविधान बनाम मनुस्मृति पर चर्चा गरमाने लगी है. एक के बाद एक संविधान पर प्रहार किया जा रहा है, कभी एससी/एसटी एक्ट के बहाने, कभी 13 प्वाइंट रोस्टर के बहाने तो कभी संविधान की प्रति को जलाने के बहाने और अब नागरिकता संशोधन कानून के बहाने. मनुस्मृति दहन दिवस आज और भी प्रासंगिक क्यूं लगने लगा है?

आज भाजपा केंद्र और कई राज्यों में सरकार चला रही है. इसने कभी खुद को गोलवलकर के विचारों से अलग नहीं किया. अपनी पुस्तक बंच ऑफ थॉट्स में गोलवलकर ने लिखा है, ‘प्राचीन काल में भी जातियां थीं और हमारे गौरवशाली राष्ट्रीय जीवन का वे लगातार हिस्सा बनी रहीं….हर व्यक्ति की, समाज की उचित सेवा करने के लिए उसकी उस कार्य प्रणाली में, जिसके लिए वह सबसे अधिक उपयुक्त हैं, वर्ण-व्यवस्था मदद करती है. यही वह तथ्य है, जिसे मनु ने अपने न्यायशास्त्र में दर्ज किया.’

हिंदू धर्म शास्त्रों एवं मनुस्मृति महिलाओं और अछूतों को संपत्ति के तौर पर दर्शाते हैं. मनुस्मृति में महिलाओं से संबंधित कुछ निर्देश इस तरह हैं:

  • पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, वृद्धा-किसी भी स्वरूप में नारी स्वतंत्र नहीं होनी चाहिए-मनुस्मृति, अध्याय-9 श्लोक-दो से छह.
  • पति पत्नी को छोड़ सकता है, गिरवी रख सकता है, बेच सकता है, पर स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नहीं हैं-मनुस्मृति, अध्याय-9, श्लोक-45.
  • ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है. इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है, उसका कर्म निष्फल होता है. अध्याय- 10, श्लोक 123-124.
  • शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करे क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है. अध्याय- 10 श्लोक 129-130.
  • मनुस्मृति के अनुसार, एक ही अपराध के लिए अपराधी की जाति और जिसके साथ अपराध हुआ है, उसकी जाति देखकर सजा दी जानी चाहिए. जिन धर्म शास्त्रों में समान अधिकारों की बात ना हो उस को बढ़ावा देने से इस तरह की घटनाओं में और इजाफा होगा.

 

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 10 साल (2007-2017) में दलित उत्पीड़न के मामलों में 66 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई. आंकड़ों के मुताबिक पिछले 4 साल में दलित विरोधी हिंसा के मामलों में बहुत तेजी से वृद्धि हुई है. वहीं दूसरी तरफ राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के हालिया आंकड़ों के अनुसार हर 15 मिनट में एक बलात्कार दर्ज होता है. यह आंकड़ें इस स्वघोषित हिन्दू राष्ट्र में बेटी बचाओ जैसे सशक्त संदेशों की धज्जियां उड़ाते हैं.

आज देश में केंद्र की सरकार है जिस हिंदुत्व के एजेंडे पर काम कर रही है उसमें मनुस्मृति स्वत: ही आ जाती है. वर्ण व्यवस्था खुद-ब-खुद आ जाती है और जाति के आधार पर सजा का मापदंड जो मनुस्मृति में वर्णित है वह भी स्वच्छन्दता से असमानता को महिला और दलितों के शोषण को जायज ठहराते हैं. ऐसी व्यवस्था को बढ़ाने वाली सरकार अगर केंद्र में रहेगी जो वर्ण व्यवस्था में भरोसा रखती है, जो बाबासाहेब आंबेडकर के संविधान की आड़ में मनुस्मृति को लागू करना चाहती है तो उस सरकार से उम्मीद नहीं की जा सकती कि देश में महिलाओं और दलितों को समान अधिकार और सुरक्षा मिलेंगे.

(द प्रिंट)

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