गुरु घासीदास सेवादार संघ (जीएसएस) ने सतनामी समाज में गुरु प्रथा को समाप्त करने की मांग पर पूर्व मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया के बयान का समर्थन किया है। जीएसएस प्रमुख लखन सुबोध ने कहा कि डॉ. डहरिया के विचारों का संघ स्वागत करता है और इसे समाज के व्यापक हित में एक सकारात्मक पहल मानता है।
जीएसएस प्रमुख ने कहा कि उनकी संस्था पिछले 25 वर्षों से सतनामी समाज में लोकतांत्रिक व्यवस्था की स्थापना के लिए काम कर रही है। उन्होंने बताया कि संघ ने इस दौरान कई सभाओं और आंदोलनों के माध्यम से समाज में जनमत तैयार किया है कि सतनाम धर्म स्थलों का प्रबंधन निजी हाथों से हटाकर आम सतनामियों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के माध्यम से संचालित किया जाए।
सुबोध ने यह भी कहा कि इस दिशा में ब्रिटिश काल में “सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी” (एसजीपीसी) का गठन हुआ था, और इसी प्रकार का एक नियम सतनाम समाज के लिए भी बनना चाहिए। सतनामियों का बड़ा हिस्सा गुरु प्रथा के विरोध में है और पारदर्शी, लोकतांत्रिक व्यवस्था की मांग कर रहा है।
लखन सुबोध ने आगे कहा कि सतनामी समाज के कुछ लोग, जो गुरु प्रथा से लाभान्वित होते हैं, इस बदलाव का विरोध कर रहे हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि सतनामी समाज का आदर्श किसी व्यक्ति नहीं, बल्कि जैतखाम होना चाहिए, जो सामूहिक चेतना का प्रतीक है और जिसे किसी निजी स्वार्थ या राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
जीएसएस प्रमुख ने डॉ. डहरिया से टेलीफोन पर चर्चा करते हुए उनके बयान का समर्थन किया और समाज के सभी सदस्यों से अपील की कि वे एक साझा मोर्चा बनाकर इस मुहिम को आगे बढ़ाएं। उन्होंने कहा कि सतनामियों को उनके असली इतिहास और धार्मिक धरोहर से अवगत कराना जरूरी है, जिसे कथित गुरुओं ने पिछले 160 वर्षों से भुला दिया है।