समाज सुधारक, प्रसिद्ध शिक्षाविद ,उत्कृष्ट विचारक एवं संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर जी को संविधान प्रारूपण समिति का अध्यक्ष 27 अगस्त को बनाया गया था। भारतीय समाज के लिये किये त्याग, संघर्ष के लिये उन्हें बाबा साहब के नाम से जाना जाता है। वे स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री और भारतीय संविधान के प्रमुख वास्तुकार थे!
14 अप्रैल 1891 को जन्में बाबा साहब जैसे महान व्यक्ति के व्यक्तित्व को टुकडों में देखना ठीक नहीं। अपने देश के इतिहास में ऐसा होने कारण अनेक महापुरुषों के साथ अन्याय हुआ। डा. भीमराव अम्बेडकर के व्यक्तित्व के साथ भी जाने अनजाने ऐसा ही हुआ। उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व का आंकलन अपने देश में आज तक किया नहीं जा सका है। वास्तव में तो बाबा साहिब बहु आयामी प्रतिभा के धनी थे। वे एक महान समाज सुधारक, श्रेष्ठ शिक्षाविद, ओजस्वी वक्ता, उत्कृष्ट विचारक व भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत व्यक्ति थे। कई बार तो ऐसा लगता है कि उनके व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना संभव नहीं है। वे तो सम्पूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बांधने के पक्षधर थे। वे एक ऐसे समाज के पक्षधर थे जिसमें आपसी भेदभाव न हो। ऐसे बहुत कम लोग होते हैं जो इतिहास में काफी लम्बे समय तक जीवित रहते हैं। कबीर, रविदास, महात्मा जोतिबाराव, शिवाजी आदि महापुरुष आज भी हमारे समाज में जीवित हैं। ये सभी अपने उत्कृष्ट कार्यों के कारण ही आज तक समाज में अपना स्थान बनाए हुए हैं। बाबा साहिब अम्बेडकर भी इसी शृंखला में आते हैं। वे किसी जाति, मत या संप्रदाय के नेतृत्वकर्ता नहीं थे। वे तो सम्पूर्ण देश के नेतृत्वकर्ता थे। वे एक राष्ट्रीय नेता थे। वे वर्ग संघर्ष या साम्यवाद के कभी भी समर्थक नहीं रहे। उनका स्पष्ट दृष्टिकोण था कि धार्मिक, सामाजिक व आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त हुए बिना मात्र राजनीतिक स्वतंत्रता से ही देश उन्नति संभव नहीं है। बाबा साहिब के द्वारा निर्मित संविधान के कारण ही अपना देश उन्नति कर रहा है। बाबा साहब को सिर्फ संविधान निर्माता तक समेटना मुश्किल है।वे ऐसे इंसान थे, जिन्होंने सदियों से जाति और वर्ण व्यवस्था में फंसे भारत को इनसे परे सोचने को मजबूर किया. औऱ इसी सोच के बूते अंबेडकर की जिंदगी में ऐसे कई पड़ाव आए जो उन्हें भारत रत्न तक ले गए।
मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में जन्में डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था। अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान के रूप में जन्में डॉ. भीमराव अम्बेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे।
1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई. बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की। रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों में जीवित बच पाए। अपने भाइयों और बहनों में केवल डॉ अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये।
अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम “अंबावडे” पर आधारित था। वह एक महान शिक्षक, वक्ता, दार्शनिक, नेता बन गए और इस तरह के कई अधिक पुरस्कार अर्जित किए। इसके अलावा वह भारत में कॉलेज शिक्षा प्राप्त करने वाले अपनी जाति में पहले व्यक्ति थे, क्योंकि अछूतों को शिक्षा पाने की अनुमति नहीं थी, उन्हें मंदिरों में पूजा करने की अनुमति नहीं थी, उन्हें ऊंची जाति के लोगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले स्रोत से पानी पीने की अनुमति नहीं थी।
स्कूल में पढ़ाई करते समय भी उन्होंने इस तरह के सभी भेदभावों का सामना किया था। लेकिन भारत में अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद एक संघर्ष की सच्ची भावना के साथ वह आगे के अध्ययन के लिए लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स गए और एक महान वकील बन गए। वह एक स्वनिर्मित व्यक्ति का सच्चा उदाहरण हैं जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सभी बाधाओं के खिलाफ इतनी मेहनत कर रहे थे।
उन्होंने भारत में सामाजिक समरसता हेतु महान काम किया। अछूतों का उत्थान करने के लिए बहिष्कृत हितकरिणी सभा उनकी तरफ से पहला संगठित प्रयास था। वह उन्हें बेहतर जीवन के लिए शिक्षित करना चाहते थे। इसके बाद कई सार्वजनिक आंदोलन और जुलूस उनके नेतृत्व के तहत शुरू किए गए थे जो समाज में समानता लाने के लिए थे।उन्हें स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री के रूप में चुना गया और संविधान प्रारूपण समिति के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था। उनकी भूमिका भारत के लिए एक नया संविधान लिखना था। समाज में समानता लाने के लिए ध्यान में रखते हुए उन्होंने अछूतों के लिए महान कार्य किया। इसके लिए धर्म की स्वतंत्रता को संविधान में परिभाषित किया गया था। उन्होंने भारत में अछूतों और उनकी स्थिति को ध्यान में रखते हुए आरक्षण की व्यवस्था बनाई। उन्होंने भारत में महिलाओं की स्थिति में सुधार के काम किये ।मातृत्व अवकाश और झारखंड की खदानों में कार्यरत महिलाओं को 12 की बजाए 8 घन्टे कार्य की समयावधि तय करवाना महिलाओं के उत्थान हेतु उल्लेखनीय प्रयास हैं। इतना ही नहीं, बल्कि 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक की रचना भी बाबासाहेब के विचारों पर आधारित थी जिसे उन्होंने हिल्टन युवा आयोग को प्रस्तुत किया था। वह अपने समय के एक प्रशिक्षित अर्थशास्त्री थे और यहाँ तक कि अर्थशास्त्र पर बहुत पुस्तकें भी लिखी थीं।
सामाजिक परिवर्तन के लिये रूस, फ्रांस, अमेरिका में खून की नदियां बहाई गई। लेकिन बाबा साहब के इस सामाजिक संघर्ष में खून अवश्य बहा, लेकिन जान लेवा हिंसा नहीं हुई। महाड़ में हुए सत्याग्रह में भोजन पंडाल पर हुए हिंसक हमले के बावजूद बाबासाहेब के आदेश पर वहाँ इकठ्ठे सत्याग्रहियों ने कोई प्रतिकार नहीं किया।उन्होने कोई संघर्ष हिंसक नहीं होने दिया।उनका सामाजिक स्वतंत्रता संघर्ष, राष्ट्र निर्माण में एक अलौकिक योगदान है।
बाबा साहब की स्मृति से जुडे़ अनेक स्थान हैं। महू में इन्दौर के निकट उनका जन्म हुआ। हिंदू कालोनी में स्थित उन के घर का नाम राज गृह है। अपने जीवन की अंतिम सांस 6 दिसंबर 1956 को ली। महापरिनिर्वाण दिल्ली में हुआ और उनका अंतिम संस्कार चैतन्य भूमि दादर की चौपाटी पर हुआ। जीवन के अंतिम पड़ाव में भगवान बुद्ध की शरण में जा कर उन्होने भारत के वैश्विक कार्य का सभी भारतीयों को स्मरण करवाया।बुद्ध धर्म के अनुयायी समकालीन ज्ञात विश्व में गये और वहाँ के बंधुओं को प्रेम और मानसिक परिवर्तन से भारत का धर्म दिया। संबंधित देश के लोगों का पुर्नजन्म करवा भारत के वैश्विक लक्ष्य को उन्होने पूरा किया।भारत में सामाजिक एकता का निर्माण हो, यहाँ बंधुत्व का निर्माण हो, अहिंसक मार्ग से परिवर्तन हो और भारत के साथ-साथ पूरे विश्व में शांति हो-यह बाबा साहब का सपना था और इस को साकार करने की जिम्मेदारी हम सब की है।(एजेंसी)
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