2 एकड़ रकबा वाले कृषकों से 2 हजार 500 रूपए
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण द्वारा खेतों में फसलों के कटने के बाद बचे अवशेषों को जलाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। खेतों में बचे फसल अवशेषों को जलाने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को संज्ञान में लेते हुए ट्रीब्यूनल द्वारा यह आदेश जारी किया गया है। आदेश में किसानों द्वारा खेतों में फसल अवशेष जलाने पर दण्ड का भी प्रावधान किया गया है। उप संचालक कृषि श्री श्याम कुंवर ने यहां बताया कि नेशनल ग्रीन ट्रीब्यूनल के आदेश के अनुसार यदि कोई कृषक अपने खेतों में फसल अवशेष जलाते हुए पाये जाते हैं तो 2 एकड़ रकबा वाले कृषकों से 2 हजार 500 रूपए, 2 से 5 एकड़ वाले कृषकों से 5 हजार रूपए एवं 5 एकड़ से अधिक रकबा वाले कृषकों से 15 हजार रूपए दण्ड वसूलने का प्रावधान किया गया है।
उप संचालक ने बताया कि फसल अवशेष को जलाने से खेत की 6 इंच परत जिसमें विभिन्न प्रकार के लाभदायक सूक्ष्मजीव जैसे राइजोबियम, एजेक्टोबैक्टर, नील हरित काई के साथ ही मित्र कीट के अण्डें भी नष्ट हो जाते हैं एवं भूमि में पाये जाने वाले ह्यूमस, जिसका प्रमुख कार्य पौधों की वृद्धि पर विशेष योगदान होता है, वो भी जल कर नष्ट हो जाते हैं, जिससे आगामी फसल उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति भी अवशेष जलाने से नष्ट होती है। फसल अवशेषों का उचित प्रबंधन जैसे फसल कटाई उपरांत अवशेषों को इकऋा कर कम्पोस्ट गड्ढे या वर्मी कम्पोस्ट टांके में डालकर कम्पोस्ट बनाया जा सकता है अथवा खेत में ही पड़े रहने देने के बाद जीरों सीड कर फर्टिलाइजर ड्रील से बोनी कर अवशेष को सडने हेतु छोड़ा जा सकता है। इस प्रकार खेत में अवशेष छोडने से नमी संरक्षण, खरपतवार नियंत्रण एवं बीज के सही अंकुरण के लिए मलचिंग का कार्य करता है। उप संचालक ने बताया कि एक टन पैरा जलाने से तीन किलो पर्टिकुलेट मैटर (पीएम), 60 किलो कार्बन मोनो आक्साइड, 1460 किलो कार्बन डाइ आक्साइड, दो किलो सल्फर डाइ आक्साइड जैसे गैसों का उत्सर्जन तथा 199 किलो राख उत्पन्न होती है। अनुमान यह भी है कि एक टन धान का पैरा जलाने से मृदा में मौजूद 5.5 किलोग्राम सल्फर नष्ट हो जाता है।