मौत की सजा बरकरार, मानसिक रूप से दिब्यांग नाबालिग लड़की का अपहरण के बाद बलात्कार और सिर कुचलकर हत्या

सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में मानसिक और शारीरिक रूप से विकलांग एक साढ़े सात साल की बच्ची के अपहरण, बलात्कार और हत्या के आरोप में एक व्यक्ति को शुक्रवार को फांसी की सजा सुनाई।

अदालत ने कहा कि अपराध अत्यधिक वीभत्स था जो अंतरात्मा को झकझोर देता है और इसमें मौत की सजा की पुष्टि के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। दोषी मनोज प्रताप सिंह जो उस समय 28 वर्ष का था, उसने 17 जनवरी, 2013 को मानसिक रूप से विकलांग नाबालिग लड़की का उसके माता-पिता के सामने अपहरण कर लिया था, उसके साथ निर्जन स्थान पर बेरहमी से दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी थी। मामला राजस्थान के राजसमंद जिले का था।


न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा, हम इस प्रकार निष्कर्ष निकाल सकते हैं: वर्तमान प्रकृति के मामले में अपराध अत्यधिक वीभत्स था जो अंतरात्मा को झकझोर देता है। विशेष रूप से हत्या करने के तरीके को देखते हुए, जहां असहाय बच्ची का सिर सचमुच कुचल दिया गया था, जिससे हड्डी के फ्रैक्चर सहित कई चोटें आईं। इसी के साथ शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के मौत की सजा के फैसले को बरकरार रखा।


पीठ ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि मामले में परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर मृत्युदंड नहीं दिया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि अगर इस तरह के सबूत पर दोष सिद्ध किया जा सकता है तो अपराध की प्रकृति के आधार पर अधिकतम सजा भी दी जा सकती है।

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