भोपाल
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सुशासन का मंत्र है- आम आदमी के काम सरलता से हो। पात्रों को योजनाओं का लाभ मिले। मोहन यादव सरकार ने कई नवाचार किए। यही वजह है कि वर्ष में सुशासन के प्रयासों से जनविश्वास जागा है।
मुख्यमंत्री ने स्वयं संभागीय मुख्यालयों पर जाकर विकास योजनाओं की समीक्षा की। पहली बार अपर मुख्य सचिव और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को संभागीय प्रभारी बनाकर भेजा तो वरिष्ठ अधिकारियों पर कार्रवाई कर यह संकेत भी दिए कि सुशासन से कोई समझौता नहीं होगा।
कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक, एसडीएम सहित अन्य अधिकारियों को मैदान में उतारा तो नामांतरण, बंटवारा, सीमांकन सहित राजस्व से जुड़े मामलों का निराकरण कराने महाअभियान चलाया।
80 लाख मामलों का हुआ निराकरण
ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्व से जुड़े प्रकरण बड़ी संख्या में सामने आते हैं। लाखों प्रकरण लंबित थे। इसके निराकरण के लिए पहला महाअभियान 15 जनवरी से 15 मार्च तक चलाया, जिसमें 30 लाख राजस्व मामलों का निपटारा हुआ। दूसरा महाअभियान 18 जुलाई से 31 अगस्त तक चला, जिसमें 50 लाख राजस्व मामलों का निपटारा हुआ। इनमें 18 लाख 95 हजार 239 नामांतरण प्रकरणों का निराकरण किया।
सीमाओं का होगा पुनर्निधारण
प्रदेश में जिलों की संख्या बढ़कर 55 हो गई है। नए जिलों की मांग भी है। तहसील के पुनर्गठन के प्रस्ताव भी मिल रहे हैं। कई कस्बे अव्यावहारिक रूप से उन जिलों में शामिल हैं, जिनका मुख्यालय दूर है। इससे जहां आमजन को परेशानी होती है, वहीं, प्रशासनिक नियंत्रण में परेशानी आती है। प्रशासनिक इकाई सुधार आयोग का भी गठन किया गया।
अधिकारियों को दिया कड़ा संदेश
सामान्यत: जब भी कोई दुर्घटना होती है तो छोटे अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराते हुए उन पर कार्रवाई कर दी जाती है। प्रदेश की मोहन सरकार में पहली बार छोटे नहीं बड़े अधिकारियों पर गाज गिरी।
मुख्यमंत्री ने गुना बस हादसे में 13 लोगों के निधन पर कड़ी कार्रवाई करते हुए परिवहन आयुक्त, कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को हटाया। इसी तरह ट्रांसपोर्टर की देशव्यापी हड़ताल के दौरान शाजापुर में ट्रक ड्रायवर को औकात दिखाने की बात कहने वाले कलेक्टर को भी हटाया गया।
व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि सरकारी दफ्तरों में चक्कर लगाना ना पड़े
आमजन को सुविधा देने के लिए जो नवाचार किए गए हैं, वे तो अच्छे हैं पर प्रक्रियाओं का सरलीकरण आवश्यक है। जब तक यह नहीं होगा, आमजन परेशान होते रहेंगे। व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि लोगों को अपना काम कराने के लिए ऑफिसों के चक्कर ही न लगाने पड़ें। संभागों में कमिश्नर तैनात हैं तो उन्हें सशक्त बनाना चाहिए ताकि छोटे-मोटे कामों के लिए मंत्रालय तक प्रकरण ही न पहुंचें। अधिकारों का विकेंद्रीकरण हो और अधिकारी संवेदनशील रहें। – शरद चंद्र बेहार, पूर्व मुख्य सचिव