राधा रानी की मृत्यु का रहस्य: पौराणिक कथा में जानें कब और कैसे हुई उनके देहांत

हिंदू धर्म में राधा अष्टमी बहुत ही खास मानी जाती है क्योंकि राधा अष्टमी के दिन राधा रानी की जन्मोत्सव मनाया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है और इस बार राधा अष्टमी 31 अगस्त को मनाई जाएगी. यह पर्व कृष्ण जन्माष्टमी के दिन 15 दिन बाद मनाई जाती है, जो कि वैष्णव समाज और भगवान कृष्ण के भक्तों के लिए बहुत महत्व रखता है. इस दिन मंदिरों में विशेष प्रार्थना और कीर्तन वगैरह किए जाते हैं, जो कि राधा रानी को समर्पित होते हैं. 

वहीं, हर कोई भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की प्रेम भक्ति से जुड़ी कथाओं से भली भांति परिचित है. लेकिन, कोई ये नहीं जानता है कि राधा रानी की मृत्यु कैसे हुई थी तो चलिए जानते हैं इससे जुड़ी कथा के बारे में. 

कैसे हुई थी राधा रानी की मृत्यु?

पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण का जन्म कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जबकि राधा जी का जन्म शुक्ल पक्ष की अष्टमी को हुआ. दोनों का जन्म एक ही तिथि पर हुआ, लेकिन पक्ष अलग थे. कृष्ण जी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ, जबकि राधा जी का जन्म शुक्ल पक्ष में. इसी वजह से जन्माष्टमी के ठीक 15 दिन बाद राधा अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है. 

राधा रानी के पिता का नाम वृषभानु था और माता का नाम कीर्ति था. राधा जी का जन्म बरसाने में हुआ था और उनका पालन-पोषण वहीं हुआ. वह वृंदावन में खेलने के लिए भी आती थीं और उनका भगवान कृष्ण के साथ जो प्रेम था, वह अत्यंत दिव्य और अलौकिक था. कहते हैं कि जब कृष्ण जी अपनी बांसुरी बजाते थे, तो उसकी ध्वनि सुनकर सारी गोपियां, खासकर राधा जी, पूरी तरह मोहित हो जाती थीं.

भगवान कृष्ण और राधा रानी के विवाह का उल्लेख अधिकांश पुराणों में नहीं मिलता, लेकिन ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णन है कि भांडीरवन में ब्रह्मा जी ने उनका विवाह कराया था. आज भी भांडीरवन में वह स्थान मौजूद है जहां यह विवाह संपन्न हुआ था.  

ऐसे हुई थी राधा रानी की मृत्यु

भगवान कृष्ण के मथुरा और फिर द्वारका जाने के बाद राधा जी से मिलना मुश्किल हो गया था. बाद में एक बार वे कुरुक्षेत्र में सूर्य ग्रहण के दौरान मिले थे. अंत में राधा रानी अपने जीवन के प्रमुख कर्तव्यों से मुक्त होकर द्वारका आईं, जहां कृष्ण जी ने उन्हें महल में एक सम्मानित पद दिया. परंतु महल की शाही जिंदगी में वह दिव्य प्रेम महसूस नहीं कर पाईं, इसलिए वह जंगल के पास एक गांव में रहने चली गईं थी.

धीरे-धीरे उनकी तबीयत बिगड़ने लगी. अपने अंतिम समय में वे कृष्ण जी को बुलाती हैं. कृष्ण जी उन्हें बांसुरी की मधुर धुन सुनाते हैं, जैसे वृंदावन की याद दिलाते हुए. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा रानी अपने शरीर का त्याग कर देती हैं और उनकी आत्मा भगवान कृष्ण के अंदर विलीन हो जाती है. यही कथा पुराणों में सबसे अधिक प्रमाणित मानी जाती है. यही वह दिव्य प्रेम कहानी है जो हमें राधा-कृष्ण के पवित्र रिश्ते की गहराई महसूस कराती है.

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