Friday, November 22, 2024
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न खेत, न किसान फिर भी किसानी में क्रांति ला रहा है जापान

यूकी मोरी अपने फल और सब्जियां मैदान में नहीं उगाते हैं. उन्हें इसके लिए खेत की ज़रूरत भी नहीं होती.

दरअसल जापानी वैज्ञानिक मोरी अपने फल और सब्जियों को एक पॉलीमर फ़िल्म पर उगाते हैं यह पॉलीमर स्पष्ट तो होता है कि इसकी परतों को आसानी से पार किया जा सकता है.

दिलचस्प यह है कि इस फ़िल्म को सबसे पहले इंसानी शरीर के बेहद अहम अंग किडनी के इलाज के लिए विकसित किया गया था.
इस पॉलीमर फ़िल्म के सबसे ऊपरी सतह पर पौधे उगते हैं, जहां पानी और पोषक तत्व जमा हो सकते हैं.

इतना ही नहीं यहां सब्जियां किसी भी वातावरण में उग सकती हैं. इस तकनीक में परंपरागत खेती की तुलना में 90 प्रतिशत कम पानी खर्च होता है. इसमें किसी कीटनाशक की ज़रूरत भी नहीं होती है क्योंकि पॉलीमर खुद से वायरस और बैक्टीरिया को रोकने में सक्षम होता है.

किसानी में क्रांति
यह एक उदाहरण है जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जापान किस तरह से खेती किसानी में क्रांति ला रहा है, हालांकि उसके पास ना तो खेत हैं और ना ही खेती करने वाले किसान.

यूकी मोरी ने बीबीसी को बताया, “मैंने खेती के लिए पॉलीमर फ़िल्म का इस्तेमाल किया है जिसका इस्तेमाल किडनी के डायलिसिस के दौरान खून को छानने के लिए किया जाता है.”

उनकी कंपनी मेबॉयल ने इस खोज के पेंटेंट का 120 देशों में पंजीयन करा लिया है. इससे जापान में चल रही कृषि क्रांति का अंदाजा होता है- दरअसल ऑर्टफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स (आईओटी) और अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से खेतों को तकनीकी केंद्रों में तब्दील किया जा रहा है.

फसलों की निगरानी और रख रखाव में सटीकता बढ़ाने की एग्रोटेक्नॉलॉजी की क्षमता निकट भविष्य में अहम साबित हो सकती है.

गहरे समुद्र से खनिज पाने का रास्ता तलाश रहा है जापान
इस साल की जल संसाधान विकास को लेकर यूएन की वर्ल्ड रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि पर्यावरण क्षरण और जल संसाधन में कमी की मौजूदा दर जारी रही तो 2050 तक अनाज उत्पादन में 40 प्रतिशत की गिरावट हो सकती है जबकि ग्लोबल जीडीपी में 45 प्रतिशत की कमी संभव है.

खेती के लिए जिस तरह की तकनीक यूकी मोरी ने विकसित की है, उस तरह की तकनीकें जापान के 150 जगहों पर अपनायी जा रही है जबकि संयुक्त अरब अमरीत जैसे दूसरे देशों में इसके जरिए खेती हो रही है.

मार्च, 2011 में हुए परमाणु हादसे और भूकंप के बाद उत्तरी पूर्वी जापान के खेती किसानी वाले इलाके में फैले सुनामी जनित पदार्थों और विकिरण संबंधी प्रदूषणों के चलते इस तरह के तरीके इलाके में जन जीवन को पटरी पर लाने में अहम साबित हो रहे हैं

रोबोट ट्रैक्टर
अनुमान है कि 2050 तक विश्व की आबादी अभी के 7.7 अरब से बढ़कर 9.8 अरब तक पहुंच जाएगी. इसको देखते हुए कंपनी उन व्यापारिक अवसरों पर दांव लगा रही है जो खाने की मांग बढ़ने से उत्पन्न होने वाली है. इसके अलावा मशीनों का भी बाज़ार बढ़ने का अनुमान है.

जापान सरकार अभी खेती किसानी में मदद करने में सक्षम 20 तरह के रोबोट को विकसित करने के लिए अनुदान मुहैया करा रही है. ये रोबोट फसल की बुआई से लेकर कटाई तक में हाथ बंटाने वाले होंगे.

होकाइडो यूनिवर्सिटी के साथ संयुक्त तौर पर इंजन निर्माता यनमार ने एक रोबोट ट्रैक्टर को विकसित किया है जिसका परीक्षण खेतों में किया जा चुका है. एक आदमी एक ही वक्त में दो ट्रैक्टरों को ऑपरेट कर सकता है, क्योंकि इन ट्रैक्टरों में सामने की बाधा की पहचान और किसी तरह की टक्कर से रोकने के लिए सेंसर लगे हुए हैं.

इस साल की शुरुआत में ऑटो निर्माता निसान सोलर पॉवर से चलने वाले रोबोट को लाँच किया था जिसमें जीपीएस और वाईफाई की सुविधा भी उपलब्ध है.

बक्से के आकार वाले इस रोबोट का नाम डक रखा गया है जो पानी लगे धान के खेतों में जाकर पानी में आक्सीजन की मात्रा बढ़ा सकता है, जिससे कीटनाशक के कम इस्तेमाल की ज़रूरत पड़ेगी और इससे पर्यावरण संरक्षण में मदद मिलेगी.

कम लोगों के साथ किसानी

तकनीक की मदद से जापानी सरकार खेती किसानी के प्रति युवाओं में दिलचस्पी जगाना चाहती है, यह वह तबका जो खेतों में सीधे काम तो नहीं करना चाहता है लेकिन उसकी दिलचस्पी तकनीक में है.

सरकार की कोशिश अर्थव्यस्था के कृषि सेक्टर में काम करने वाले लोगों की संख्या बढ़ाने की भी है. बीते एक दशक में, जापानी में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में लगे लोगों की संख्या 22 लाख से गिरकर 17 लाख रह गई है.

इसमें से ज़्यादातर श्रमिकों की औसत आयु 67 साल की हो चुकी है और अधिकतर किसान पार्ट टाइम काम करते हैं, ये स्थिति को और भी चिंताजनक बनाती है.

जापान की भौगोलिक स्थिति, जापान की खेती किसानी को काफी हद तक प्रभावित करती है. जापान अपनी ज़रूरत का महज 40 प्रतिशत अन्न उत्पादित करता है. जापान के ज़मीनी हिस्से का 85 प्रतिशत हिस्सा पर्वतीय है. खेती उपयुक्त जमीन के अधिकांश हिस्से में धान की खेती होती है.

चावल हमेशा से जापानियों का प्रमुख भोजन रहा है. सरकार किसानों को एक हेक्टेयर की छोटी जमीन में भी धान की खेती के लिए अनुदान मुहैया कराती है. हालांकि अब लोगों के खान पान की आदत बदल रही है.

ड्रोन से छिड़काव
जापान में प्रति व्यक्ति सालाना चावल के खपत में कमी हुई है. 1962 में यह 118 किलोग्राम था जो 2006 में घटकर 60 किलोग्राम से भी कम रह गई है. इसके चलते खेती में भी विविधता देखने को मिल रही है. लेकिन खेती किसानी में हाथ बंटाने के लिए लोग ही नहीं हैं, लिहाजा मशीनों और बायोटेक्नोलॉजी पर निर्भरता बढ़ रही है.

फसलों पर कीटनाशक का छिड़काव करने के लिए ज्यादा से ज्यादा ड्रोन का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिस काम को इंसान पूरे दिन में किया करते हैं, उसे ये ड्रोन महज आधे घंटे में पूरा कर देते हैं.

उच्च तकनीक के चलते फसलों के लिए अब खेतों की ज़रूरत भी नहीं रह गई है.

ग्रीनहाउसेज और हायड्रोपोनिक्स (बिना ज़मीन के पौधों क उगाने की तकनीक, जिसमें खनिज और पोषक तत्वों का इस्तेमाल पानी के घोल में करते हैं) के अलावा जापान अब फल और सब्जियां भी इन तकनीकों की मदद से उगा रहा है.

फर्श से लेकर छत तक शेल्फ बनाकर खेती करने के मामले में चिभा का मिराई समूह सबसे बेहतर काम कर रहा है. यह समूह हर दिन के लिहाज से 10 हज़ार लोगों के लिए सलाद में इस्तेमाल होने वाले लेट्यूस उगाता है.
परंपरागत तरीके की तुलना में इसमें उत्पादकता 100 गुना ज्यादा हो जाती है. सेंसर उपकरणों की जगह से कंपनी कृत्रिम प्रकाश, द्रव पोषक, कार्बन डायाक्साइड के स्तर और तापमान को नियंत्रित रखती है. कृत्रिम रोशनी के चलते पौधे तेज़ी से बढ़ते हैं और बीमारियों से होने वाले नुकसान को भी नियंत्रित रखना संभव होता है.

ज्यादा ऊर्जा लागत होने के बावजूद बीते एक दशक में ऐसे पौधों वाले फैक्ट्रियों की संख्या तीन गुना बढ़कर 200 हो चुकी है.हायड्रोपोनिक्स का मौजूदा बाज़ार 1.5 अरब डॉलर से ज्यादा का है, लेकिन कंसल्टेंसी फर्म एलाइड रिसर्च का अनुमान है कि 2023तक यह चार से भी ज्यादा गुना बढ़कर 6.4 अरब डॉलर हो जाएगी.
तकनीक का स्थानांतरण
जापान ने अफ्रीकी देशों के सालाना चावल उत्पादन को 2030 तक दोगुना बढ़ाकर 50 मिलियन टन पहुंचाने में मदद करने का लक्ष्य रखा है, इस दिशा में कई प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है.

उदाहरण के लिए, सेनेगल में खेती किसानी करने वाले टेक्नीशियनों और सिंचाई क्षेत्र की तकनीक में ट्रेनिंग देने के लिए जापान ने निवेश किया है. इसके चलते प्रति हेक्टेयर चार से सात टन धान की उत्पादकता बढ़ेगी और उत्पादकों की आमदनी 20 प्रतिशत बढ़ जाएगी.
जापान की रणनीति अफ्रीकी महादेश के कृषि क्षेत्र में सतत मशीनी विकास के लिए निजी निवेश और कारोबार को बढ़ावा देने की है. इसके अलावा वियतनाम और म्यांमार में भी सहयोगात्मक गतिविधि चल रही है. ब्राजील में भी कुछ प्रोजेक्टों पर काम चल रहा है.

लेकिन जापान की क्रांति का मुख्य उद्देश्य अपनी खाद्य सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाना है. जापान के अधिकारी 2050 तक अपने खाद्य ज़रूरतों का 50 प्रतिशत हिस्सा उत्पादित करना चाहते हैं. और यह काम वह तकनीक की मदद से करना चाहते हैं.

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