पैरामेट्रिक इंश्योरेंस, गिग वर्कर्स और दैनिक कमाई पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिए मौसम के प्रभाव से सुरक्षा

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस : भारत की गिग इकॉनमी में पिछले पांच वर्षों में असाधारण बढ़ोतरी हुई है. Niti Aayog की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020-21 में लगभग 77 लाख लोग गिग इकॉनमी में काम कर रहे थे और भारत के गिग वर्कर्स की संख्या 2024-25 में मौजूदा 1 करोड़ से बढ़कर, 2029-30 तक 2.35 करोड़ होने का अनुमान है. चूंकि 2030 तक भारत की GDP में गिग श्रमिकों की भागीदारी लगभग 1.25% होगी, इसलिए उनकी भलाई और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना न सिर्फ उनके लिए ज़रूरी है, बल्कि देश की समग्र अर्थव्यवस्था के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है. उनकी सुरक्षा और स्थिरता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए.

तेज़ी से होता शहरीकरण, बेहतर डिजिटल कनेक्टिविटी और सुविधाजनक काम का वादा अधिक से अधिक लोगों को गिग नौकरियों की ओर आकर्षित कर रहा है. यह कार्यबल तेज़ी से भारत के जॉब मार्केट का अहम हिस्सा बनता जा रहा है. लेकिन आज़ादी के साथ जोखिम भी बढ़ता है, खासतौर पर जब जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम और ज़्यादा खराब और अनिश्चित होता जा रहा है.

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस : यूनाइटेड नेशन्स इकॉनोमिक एंड सोशल कमिशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (UNESCAP) की हाल ही की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में बढ़ते तापमान की वजह से 2030 तक दैनिक श्रमिकों के कार्य घंटों में 5.8% की कमी आने की संभावना है. यह एक बड़ी चुनौती साबित होगा, खास तौर पर इसलिए क्योंकि देश का लगभग 90% कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहा है (सोर्स:PIB). सर्वेक्षणों से पता चलता है कि गिग वर्कर्स आमतौर पर 10-घंटे के शिफ्ट से प्रति दिन ₹500 से ₹1,000 तक कमाते हैं. अगर काम लगातार मिले, तो सालाना आमदनी 1.8 से 3.6 लाख रुपये हो सकती है, लेकिन हकीकत में यह कम ही स्थिर होती है. कम और अनिश्चित आमदनी, ऊपर से खराब मौसम की मार, ये सब मिलकर उनके रोज़गार को गंभीर खतरे में डालते हैं.

गिग वर्कर्स और दैनिक कमाई पर निर्भर लोगों के लिए, हर दिन काम करना ज़रूरी होता है. उनकी कमाई करने की क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि वे काम कर सकें. इसलिए जब मौसम खराब होता है, चाहे लू चले, अचानक तेज़ बारिश हो या बाढ़ आए, उनका रोज़गार खतरे में पड़ जाता है. तेज़ बारिश में डिलीवरी पार्टनर को असुरक्षित रास्तों से गुज़रना पड़ता है, जिससे उनकी जान और कमाई दोनों खतरे में आ जाती हैं. ऑटो और टैक्सी ड्राइवर को अत्यधिक गर्मी या बाढ़ में कम कस्टमर मिलते हैं, जिससे उनकी कमाई पर असर पड़ता है. कंस्ट्रक्शन का काम करने वाले श्रमिकों और बाहर काम करने वाले लोगों को अक्सर खराब हालातों में कई दिनों तक काम रोकना पड़ता है. ऐसी रुकावटों का मतलब सिर्फ आमदनी का नुकसान नहीं होता, बल्कि ज़्यादा खर्च भी उठाने पड़ते हैं, जैसे गर्मी में बिजली के बढ़े हुए बिल, पानी से हुई टूट-फूट की मरम्मत या मौसम की वजह से होने वाली बीमारियों के इलाज का खर्च. कई लोगों के लिए ये परेशानियां जल्दी ही भारी पड़ने लगती हैं.

जलवायु जोखिमों के लिए पैरामेट्रिक इंश्योरेंस समाधान

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस : जलवायु जोखिमों से गिग वर्कर्स की सहायता के लिए पैरामेट्रिक इंश्योरेंस एक महत्वपूर्ण टूल बन रहा है. जब भीषण गर्मी, तेज़ बारिश या बाढ़ जैसे मौसम से काम करने की स्थिति कठिन हो जाती है, तो यह इंश्योरेंस जल्दी और आसानी से एक तय राशि का भुगतान करता है. ना तो ढेर सारे कागज़ों की ज़रूरत होती है और ना ही नुकसान का सबूत देना पड़ता है; भरोसेमंद मौसम डेटा के आधार पर भुगतान अपने आप हो जाता है. इस तरह गिग वर्कर्स लंबी क्लेम प्रोसेस या जटिल नियमों की चिंता किए बिना, अपनी खोई हुई आमदनी जल्दी से वापस पा सकते हैं.

 

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस की विशेषताएं और उपयोग

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस : खराब मौसम से सुरक्षा पाने का एक सीधा और आसान तरीका है, जिसमें कोई झंझट नहीं होता. इसे खरीदना बहुत आसान है, बस इंश्योरेंस कंपनी की ऐप डाउनलोड करें या उनकी वेबसाइट पर जाएं और जलवायु से जुड़ी अनिश्चितताओं से सुरक्षा पाएं.

उदाहरण के लिए, रमेश की कहानी सुनें. वे पुणे में एक पार्सल डिलीवरी गिग वर्कर हैं, जिन्होंने हाल ही में एक ऐप के माध्यम से क्लाइमेट-सेफ इंश्योरेंस पॉलिसी खरीदी है. इस प्लान में पांच दिन तक की बारिश शामिल है, जिसमें हर दिन ₹1000 मिलते हैं और कुल ₹5000 तक मिल सकते हैं. यह पॉलिसी तब सक्रिय होती है जब रोज़ की बारिश एक तय सीमा, जिसे स्ट्राइक प्वाइंट कहा जाता है, से अधिक हो जाती है. पुणे में यह सीमा 35 मिमी है. इसलिए अगर किसी भी दिन 35 मिमी से अधिक बारिश होती है, तो रमेश को उस दिन 1000 रुपये ऑटोमैटिक रूप से मिल जाते हैं. अगर पांच दिनों में से तीन दिन ऐसा होता है तो उसे कुल 3000 रुपये मिलते हैं. स्ट्राइक-पॉइंट का आकलन सरकारी मान्यता प्राप्त संस्था जैसे कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा प्रदान किए गए डेटा की मदद से ऑटोमैटिक रूप से किया जाता है. ना कोई कागज़ी झंझट, ना इंतज़ार, बस तुरंत और अपने आप भुगतान.

यह सीधा-सादा मॉडल सिर्फ बारिश तक सीमित नहीं है. यह सर्द हवाओं और मौसम की अन्य घटनाओं को भी कवर कर सकता है, जिससे गिग वर्कर्स से लेकर ऑफिस कर्मचारियों तक हर कोई अपनी रोज़मर्रा के हिसाब से सुरक्षा चुन सकता है.

गिग इकोनॉमी और उनकी आजीविका की सुरक्षा

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस : भारत की गिग इकॉनमी में बड़ी उम्मीदें हैं, जो नवाचार और नौकरी दोनों को बढ़ावा देती है, साथ ही सभी के लिए विकास का रास्ता भी खोलती है. लेकिन लाखों गिग वर्कर्स के लिए, थोड़े समय के लिए मौसम की खराबी भी उनकी आर्थिक स्थिति को बहुत प्रभावित कर सकती है. पैरामेट्रिक इंश्योरेंस सक्रिय और व्यापक समाधान प्रदान करता है: यह एक सुरक्षा जाल की तरह है जो काम रुकने पर आय जारी रखने में मदद करता है, ताकि वर्कर्स अपनी बचत खत्म न कर लें या महंगे लोन न लें. इस सुरक्षा के साथ, वे ज़रूरी खर्चे जैसे किराया, राशन और बिजली-पानी का बिल समय पर चुका सकते हैं, जिससे उनकी गरिमा बनी रहती है और वे आगे बढ़ने पर ध्यान दे पाते हैं.

इस समय भारत अपनी गिग इकॉनमी की पूरी ताकत को सामने लाने के लिए ज़रूरी इंतज़ाम कर रहा है, ज़रूरी है कि इसकी नींव टिकाऊ और मज़बूत बनाई जाए. इस काम के लिए निजी, सरकारी और सामाजिक क्षेत्र के लोग, साथ ही दान देने वाले और निवेशक, मिलकर नए और सरल तरीके बनाएं जिससे जोखिम कम हो और हर किसी को आर्थिक मदद मिल सके. जलवायु अनिश्चितता और आय की स्थिरता के बीच अंतर को कम करके, पैरामेट्रिक इंश्योरेंस एक प्रोडक्ट नहीं रह जाता, यह आर्थिक सुरक्षा का आधार बन जाता है.

आने वाले वर्षों में भारत की गिग इकॉनमी की ताकत सिर्फ अवसरों पर नहीं, बल्कि मौसम संबंधी मुश्किलों का सामना करने की क्षमता पर भी निर्भर करेगी. आइए यह सुनिश्चित करें कि चाहे कोई भी स्थिति हो, हर गिग वर्कर आने वाली स्थितियों का सामना आत्मविश्वास, स्थिरता और सम्मान के साथ कर सके.

पैरामेट्रिक इंश्योरेंस, गिग वर्कर्स और दैनिक कमाई पर निर्भर रहने वाले लोगों के लिए मौसम के प्रभाव से सुरक्षा

श्री आशीष अग्रवाल, हेड एग्री बिज़नेस और CSC,

बजाज जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड

(पूर्व नाम बजाज आलियांज़ जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड)

 

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