7 सितंबर से पितृपक्ष शुरू, जानें पितरों को जल अर्पण करने की सही विधि

पंचांग के अनुसार, इस साल पितृपक्ष की शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हो रही है और यह 21 सितंबर 2025 तक चलेगा. यह 15 दिनों की वह अवधि है जब दिवंगत पूर्वजों को याद करते हैं और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हैं. पितृपक्ष में पितरों को जल अर्पित करना, जिसे तर्पण भी कहा जाता है, एक बहुत ही महत्वपूर्ण धार्मिक कर्म है. इस क्रिया को सही नियमों के साथ करना बेहद ज़रूरी है ताकि पितरों की आत्मा को शांति मिल सके और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो. आइए, जानते हैं पितृपक्ष में पितरों को जल चढ़ाने के सही नियम और विधि.

जल अर्पित करने की सही दिशा
तर्पण करते समय दिशा का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है. पितरों को जल हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख करके अर्पित करना चाहिए. दक्षिण दिशा को पितरों की दिशा माना जाता है.

कैसे करें तर्पण? (सही विधि)
स्नान और शुद्धता: तर्पण करने से पहले स्नान करके खुद को शुद्ध करें. साफ़ और धुले हुए वस्त्र धारण करें.

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सही पात्र: जल अर्पित करने के लिए तांबे, पीतल या चांदी के पात्र का उपयोग करें. प्लास्टिक या स्टील के पात्र का उपयोग वर्जित है.

कुशा और तिल का उपयोग: तर्पण के लिए कुशा (एक प्रकार की घास) और काले तिल का उपयोग अनिवार्य माना जाता है. जल में काले तिल मिलाकर अर्पित किए जाते हैं.

हाथ की सही मुद्रा: जल अर्पित करते समय अपनी अनामिका (ring finger) और अंगूठे के बीच कुशा और तिल रखकर जल को धीरे-धीरे पात्र से गिराना चाहिए. इस मुद्रा को पितृतीर्थ कहते हैं.

जल का प्रवाह: जल अर्पित करते समय ॐ पितृभ्य: नम: या ॐ पितृ देवताभ्यो नमः मंत्र का जाप करना चाहिए. जल को किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय के पास प्रवाहित करना उत्तम होता है. अगर यह संभव न हो, तो घर में किसी गमले या तुलसी के पौधे को छोड़कर, किसी ऐसी जगह जल गिराएं जहां वह व्यर्थ न हो.

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ये गलतियां बिल्कुल न करें?
गलत दिशा में तर्पण: दक्षिण के बजाय किसी अन्य दिशा में जल अर्पित न करें.

अशुद्ध अवस्था: बिना स्नान किए और अशुद्ध वस्त्र पहनकर तर्पण न करें.

लोहे या स्टील का पात्र: तर्पण के लिए लोहे या स्टील के बर्तनों का उपयोग बिल्कुल न करें.

जूते-चप्पल पहनकर तर्पण: कभी भी जूते-चप्पल पहनकर तर्पण नहीं करना चाहिए.

पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है. मान्यता है कि इन 15 दिनों के दौरान पितर पृथ्वी पर अपने वंशजों से मिलने आते हैं. इस दौरान किए गए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान से उनकी आत्मा तृप्त होती है और वे अपने वंशजों को सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देते हैं.