बीसवीं शताब्दी के विश्व के महानतम प्रबुद्ध व्यक्तित्वों में एक, बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर को नमन करते हुए
डॉ. आंबेडकर ने प्रबुद्ध भारत का स्वप्न देखा था। उन्होंने अपने अंतिम अखबार का नाम भी ‘प्रबुद्ध भारत’ रखा। प्रबुद्ध भारत एक ऐसा भारत जिसकी बुनियाद स्वतंत्रता, समानता और बंधुता पर खड़ी हो और जीवन के सभी क्षेत्रों में लोकतंत्र जिसका प्राण हो। जहां सही गलत की पहचान का आधार तर्क, विवेक, न्याय और लोककल्याण हो, जिसकी शिक्षा बुद्ध ने दी थी।
प्रबुद्ध भारत का स्वप्न किसी एक वर्ग, समुदाय, जाति,लिंग, क्षेत्र या भाषा-भाषी के लिए नहीं था, यह पूरे भारत के लिए था। गौतम बुद्ध, कबीर और जोतीराव फुले को अपना गुरु घोषित कर डॉ. आंबेडकर ने यह रेखांकित कर किया था कि वे उनकी विरासत को ही भारत की प्रगतिशील मानवीय विरासत मानते हैं और इसके उलट आर्य-ब्राह्मण-द्विज मर्दों की श्रेष्ठता और अन्यों की अधीनता की घोषणा करने वाली वैदिक-सनातन-हिंदू वर्ण-जाति एवं पितृसत्ता की विरासत को भारत की मनुष्य विरोधी पतनशील विरासत के रूप में बार-बार रेखांकित करते हैं।
हिंदू धर्म एवं संस्कृति के मनुष्य विरोधी चरित्र के चलते ही वे इस पर आधारित हिंदू राष्ट्र से घृणा करते हैं और हर कीमत पर हिंदू राज की स्थापना को रोकने का आह्वान करते हैं।
उन्होंने लिखा- ‘पर अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है, तो निस्संदेह इस देश के लिए एक भारी ख़तरा उत्पन्न हो जायेगा। हिंदू कुछ भी कहें, पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए एक ख़तरा है। इस आधार पर लोकतंत्र के अनुपयुक्त है। हिंदू राज को हर क़ीमत पर रोका जाना चाहिए’।
कटु सच यह है कि डॉ. आंबेडकर के सपनों के प्रबुद्ध भारत की जगह मूर्खता और जाहिली पर आधारित हिंदू राष्ट्र की स्थापना हो चुकी है, भले ही इसकी औपचारिक घोषणा न हुई हो।
डॉ. आंबेडकर ने हिंदू राष्ट्र को हमेशा द्विज राष्ट्र के रूप में देखा है। उनका साफ शब्दों में कहना रहा है कि मुसलमान विरोध हिंदू राष्ट्र की परियोजना का बाहरी तत्व है, इसका मूल तत्व है, मुसलमानों के खिलाफ घृणा के नाम पर बुरी तरह से वर्ण-जाति में बंटे और एक दूसरे से नफरत करने वाले हिंदुओं के बीच एक कायम करना। जिसका मूल उद्देश्य गैर-द्विजों पर द्विजों और महिलाओं पर पुरूषों के वर्चस्व को कायम रखना है।
डॉ. आंबेडकर के प्रबुद्ध भारत में सामाजिक असमानता के साथ आर्थिक असमानता के लिए भी कोई जगह नहीं थी। संविधान सभा में साफ शब्दों में उन्होंने सामाजिक-आर्थिक असमानता के खिलाफ चेताया था और यह भी कहा था कि ये दोनों असमानताएं राजनीतिक समानता को भी लील जायेंगी।
आज यह साफ-साफ दिख रहा।
उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि मेहनतकश वर्गों के दो दुश्मन हैं- ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद।
आज ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद का भारत में पूरी तरह गठजोड़ हो गया है।
आज के भारत को निम्न शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है-
आज भारत में हिंदू राष्ट्र के नाम पर कार्पोटाइजे़शन, जाति, पितृसत्ता और अन्य धर्मावलंबियों के प्रति घृणा का एक ज़हरीला मेल तैयार किया गया है। विकास के नाम पर कार्पेटाइज़ेशन और हिंदुत्व के नाम पर मुसलमानों के प्रति घृणा इसके बाहरी तत्व हैं, तो उच्च जातीय द्विज विचारधारा और मूल्य तथा जातिवादी पितृसत्ता इसके अंतर्निहित आंतरिक तत्व हैं।
डॉ. आंबेडकर को उनके जन्मदिन पर याद करने का एक ही मूल निहितार्थ हो सकता है, उनके प्रबुद्ध भारत के निर्माण के स्वप्न को पूरा करना। इसके लिए जरूरी होगा कि असमानता आधारित ब्राह्मणवाद और पूंजीवाद के गठजोड़ का विनाश करके स्वतंत्रता, समता और बंधुता आधारित लोकतांत्रिक भारत के निर्माण के लिए संघर्ष करना ।
संजीत बर्मन की कलम से