जेठमलानी की नाराजगी पर कांग्रेस को पीछे लेने पड़े थे अपने कदम, जान‍िए रोचक तथ्‍य

लखनऊ । वरिष्ठ वकील, प्रखर वक्ता और नेता रहे राम बूलचंद्र जेठमलानी की लखनऊ से कई यादें जुड़ी हैं। खासकर वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव उस वक्त रोचक हो गया, जब जेठमलानी कांग्रेस उम्मीदवार की उम्मीद के साथ पहुंचे लेकिन, बात नहीं बनी। उनसे पहले स्वर्गीय डॉ. अखिलेश दास उनसे पहले टिकट झटक लाए, जो उन्हें खासा नागवार गुजरा। जिद के पक्के जेठमलानी पीछे नहीं हटे। तय कर लिया कि चुनाव लड़ेंगे और निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में ताल ठोक दी। हालांकि, जेठमलानी की नाराजगी के आगे आखिरकार कांग्रेस को झुकना पड़ा। पार्टी चिन्ह तो उन्हें नहीं मिल सका मगर, कांग्रेस के समर्थन पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के सामने मैदान में उतर गए। नतीजे आए तो हार का मुंह देखना पड़ा। वो भी तीसरे पायदान पर पहुंच गए।

कांग्रेस प्रवक्ता वीरेंद्र मदान कहते हैं कि चूंकि नामांकन प्रक्रिया अंतिम दौर में थी, इसलिए जेठमलानी को कांग्रेस का चुनाव चिन्ह नहीं मिल पाया था। फिर भी पार्टी ने अखिलेश दास को चुनाव में बैठा दिया और जेठमलानी को बाहर से समर्थन दिया। यह पहला चुनाव था जब कांग्रेस चुनाव चिन्ह पर कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था। दो मोमबत्ती चुनाव चिन्ह पर रामजेठमलानी थे। कांग्रेस नेता गुलाम नवी आजाद, कपिल सिब्बल, प्रमोद तिवारी और अखिलेश दास ने उनका चुनाव प्रचार किया था।

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अटल से हारे, तीसरे नंबर पर रहे

रामजेठमलानी लखनऊ से संसद पहुंचना चाहते थे। भाजपा उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ चुनाव लडऩे के कारण वर्ष 2004 का लखनऊ की लोकसभा सीट चर्चा में रही थी। तब अटल बिहारी वाजपेयी को 324714 मत मिले थे, जबकि राम जेठमलानी 57,685 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। उन्हें 9.97 प्रतिशत मत मिले थे। अटल बिहारी वाजपेयी को 56.12 प्रतिशत मत मिले थे। दूसरे नंबर पर सपा उम्मीदवार डॉ. मधु गुप्ता रहीं, जिन्हें 106339 मत मिले थे।

संजय सिंह की वकालत में लखनऊ पहुंचे

वर्ष 1989 के दौरान बैडमिंटन खिलाड़ी सैय्यद मोदी हत्याकांड में फंसे कांग्रेसी नेता संजय सिंह की पैरवी करने के लिए रामजेठमलानी लखनऊ आए थे। रामजेठमलानी को देखने के लिए सीबीआइ कोर्ट के बाहर भीड़ भी जुटती थी।

मायावती से मुकाबले को मुलायम के वकील बने जेठमलानी

शहर के वरिष्ठ वकील एलपी मिश्र कहते हैं कि वैसे तो बार के कार्यक्रम में रामजेठमलानी से मुलाकात होती रही थी लेकिन, आमना-सामना तब हुआ जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती सरकार ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ 52 मुकदमे लिखा दिए थे। तब हम मायावती के वकील थे और रामजेठमलानी मुलायम सिंह की पैरवी करने आए थे। जस्टिस विष्णु सहाय की कोर्ट में मामला चला। कोर्ट में दोनों ने अपने-अपने लोगों की पैरवी में बहस की। इसके बाद रामजेठमलानी के साथ चाय भी पी थी। तब रामजेठमलानी ने कहा था कि वह सब्जी नहीं खाते हैं, सिर्फ मीट ही उन्हें अ’छा लगता है।

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जेठमलानी साहब जैसा दूसरा कोई नहीं : आइबी सिंह, वरिष्ठ अधिवक्ता

मशहूर अधिवक्ता राम जेठमलानी के जिंदगी के तमाम पहलू ऐसे भी हैं जो अब तक सामने नहीं आए। वह एक नामी वकील के साथ कुशल वक्ता, हाजिर जवाब और भावुक इंसान थे। बैडमिंटन खिलाड़ी सैय्यद मोदी हत्याकांड में राम जेठमलानी पैरवी के लिए अक्सर राजधानी आते थे। मेरी पहली बार तभी उनसे मुलाकात हुई थी। केस के सिलसिले में अक्सर हम साथ रहते थे, उनके साथ काम करने का मुझे भी मौका मिला था। वाकई अपने काम में तो उनका कोई जवाब नहीं था। मैंने इतने साल के करियर में देश विदेश के तमाम वकील देखे हैं, लेकिन जेठमलानी साहब जैस दूसरा कोई नहीं। मैं कह सकता हूं कि एशिया में तो उनके जैसा कोई वकील नहीं होगा।

लोग भले ही उनको पैसे वालों का वकील कहते हों, लेकिन यह कम लोगों को ही पता होगा कि कई केस वह बिना फीस लिए ही लड़ते थे। अगर वह जान लें कि केस सही है और पीडि़त पैसे देने की स्थिति में नहीं है तो ऐसे ही मदद कर देते थे। मुझे याद है कि इंदिरा गांधी के हत्यारों का जब वह केस लड़ रहे थे तो चारों ओर उनकी बहुत आलोचना हुई। आरोपित केहर सिंह के बेटे राजेंद्र को भी सीबीआइ केस में शामिल करना चाहती थी। जेठमलानी साहब ने कहा कि यह तो मैं नहीं होने दूंगा। जिस इंसान का केस से कोई लेना देना नहीं, उसे क्यों फंसा रहे हो। आखिरकार केहर के बेटे को सीबीआइ के जाल से बचाने के लिए उन्होंने उसे अपने कार्यालय में नौकरी दे दी ताकि सीबीआइ उसे परेशान न कर सके। कुछ ऐसा था उनका व्यक्तित्व।

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