नई दिल्ली: यदि समस्याएं हैं तो उसकी व्यवस्था है, चिंतन से समाधान निकल सकता है. मूल बात व्यक्ति को बदलने की है. संघ सब कुछ करता है ऐसा नहीं है, सब कुछ संघ ने किया, ऐसा जब हो गया तो यह संघ की पराजय है. संघ चाहता है पूरा समाज संगठित हो. ये बातें आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने यहां मंगलवार को अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में कहीं. भागवत ‘आरएसएस- रोडमैप फॉर द 21 सेंचुरी’ किताब के विमोचन के दौरान बोल रहे थे. यह किताब आरएसएस प्रचारक और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री सुनील आंबेकर ने लिखी है. किताब अंग्रेजी में है लेकिन संघ की सारी परिकल्पनाएं भारतीय भाषाओं में है जिसका शाब्दिक शब्द विदेशी भाषा में नहीं मिलता.
भागवत ने कहा, “संघ को विचार रखने कि जरूरत ही नहीं है. संघ में विचार मंथन की प्रक्रिया चलती रहती है. निर्णय सहमति पर होता है. ये प्रक्रिया संघ की जीवन पद्धति है. संघ में हिदू राष्ट्र और हिंदुत्व को छोड़कर सब बदल सकता है. ये हजारों साल से है. हमने नहीं बनाया. इसे नहीं बदला जा सकता.”
उन्होंने आगे कहा, “एक व्यक्ति भी अगर इस राष्ट्र में हिंदू है तो ये हिन्दू राष्ट्र है. अपना जीवन स्वार्थ के लिए नहीं. ये सब के लिए है. ये भारत की कल्पना है. व्यक्ति के आचरण बदलने का काम संघ करता है. संघ चाहता है पूरा समाज संगठित हो. पूरा समाज मतलब पूरा समाज.”
उन्होंने आगे कहा, “जो हिंदू है या जो अपने को हिंदू नहीं मानते, वे सब अपने सामर्थ्य से देश को मजबूत बनाएं. जो हमारे बारे में किताब लिखता है, जो हमारे खिलाफ भी लिखता है तो हम उसको बैन नहीं करते. किसी को पढ़ने से नहीं रोकते. ये विचारों की स्वतंत्रता है. स्वयंसेवक बनने की कोई शर्त नहीं लेकिन स्वयंसेवक बनने के बाद अपेक्षा रखते हैं. संघ किसी पुस्तक के बंधन में नहीं है.”
आरएसएस प्रमुख ने कहा, “पुराणिक कल में हनुमान जी और ऐतिहासिक कल में शिवजी आदर्श हैं. तीसरा नाम हेडगेवार जी का है. संघ में आइए. दो साल रहिये. संघ को समझ में आए या नहीं लेकिन संघ के बारे में गलतफहमियां जरूर दूर हो जाएंगी.”