भोपाल
भारत ने 1947 में चीतों के विलुप्त होने के बाद सितंबर 2022 में मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में चीता पुनर्वास परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना के तहत नामीबिया से 8 और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को लाया गया। लेकिन अब दक्षिण अफ्रीका ने नए चीतों की आपूर्ति पर अस्थायी रोक लगा दी है। इससे पहले केन्या ने भी चीतों के भेजने से इनकार किया था।
क्या है दक्षिण अफ्रीका की चिंता
दक्षिण अफ्रीका ने पहले भेजे गए चीतों की सेहत और उनके भारत में अनुकूलन की समीक्षा करने का फैसला किया है। वहां के अधिकारियों ने भारत के साथ बातचीत की कमी और चीतों की मौतों के लिए अत्यधिक मौसम को जिम्मेदार ठहराया है। इसके अलावा, जंगल से लाए गए चीतों को लंबे समय तक बंदी बनाए रखने की बात भी उनके लिए चिंता का विषय है। दक्षिण अफ्रीका की ओर से एक मंत्री जल्द ही भारत का दौरा करेंगे, ताकि पहले भेजे गए चीतों की स्थिति का जायजा लिया जा सके।
भारत का जवाब
भारत की तीन सदस्यीय एक्सपर्ट टीम ने दक्षिण अफ्रीका में मुलाकात कर कूनो में चीतों की सफलता की कहानी सुनाई। 17 चीतों को जंगल में छोड़ा गया, जहां वे तेंदुओं और आसपास के मानव समुदायों के साथ शांति से रह रहे हैं। पहले साल में कुछ चीतों की मौत के कारणों को भी स्पष्ट किया गया। भारत ने यह भी बताया कि गर्मी से बचाने के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाली पानी की व्यवस्था की गई है, खासकर तब जब नामीबियाई चीता ज्वाला के तीन शावकों की मई 2023 में अत्यधिक गर्मी के कारण मौत हो गई थी।
केन्या ने क्यों कहा 'नो'?
दक्षिण अफ्रीका की ओर से नए चीतों की आपूर्ति में देरी होने पर भारत ने केन्या का रुख किया। लेकिन वहां के पर्यावरणविदों ने इसका विरोध किया। उनका कहना था कि अलग-अलग जेनेटिक प्रजाति के चीतों को लाना अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN) के नियमों का उल्लंघन है। IUCN ने भी दो उप-प्रजातियों को एक ही क्षेत्र में लाने के खिलाफ चेतावनी दी, क्योंकि इससे जेनेटिक मिश्रण और स्थानीय अनुकूलन में बाधा आ सकती है। मध्य प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने कहा, 'केन्या से चीते लाने का विचार छोड़ दिया गया है, क्योंकि यह प्रोजेक्ट को नुकसान पहुंचा सकता है। अब हम केवल दक्षिण अफ्रीका से ही चीते लाएंगे।'