सुंदर मेरा गाँव जी
सरल स्वभाव के लोग,
दिखते भोले भाले हैं।
पीपल की छांव जी,
सुंदर मेरा गांव जी।
फसल लगाते किसान,
लहलहाती हरियाली धान।
चिड़िया करें चांव जी,
सुंदर मेरा गाँव जी।
सुंदर पाठशाला है ,
बस्ती से लगा एक नाला हैं।
कौआ करे कांव जी,
सुंदर मेरा गाँव जी।
पेड़ों की हरियाली ,
फूलों की न्यारी ।
गाय बैल की पांव जी,
सुंदर मेरा गाँव जी।
सतनामियों की बस्ती ,
निर्भीक हमेशा रहते है।
जैतखाम की ठाँव जी,
सुंदर मेरा गाँव जी।

रचनाकार डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”
बलौदाबाजार(छ. ग.)