विकास के पथ पर बढ़ रहे राजस्थान में अभी भी अंधविश्वास (superstition) ने डेरा जमा रखा है. बूंदी जिले में अंधविश्वास के चलते आये दिन ‘आत्मा’ (Soul) को मनाने का खेल चलता रहता है.
भीलवाड़ा इलाके में इलाज के नाम पर मासूम बच्चों को भोपों द्वारा गर्म सलाखों से दागना आम बात है. इसी कड़ी में सोमवार को बूंदी जिला अस्पताल और हिंडोली सीएचसी में तंत्र-मंत्र तथा टोने-टोटके चलते रहे. यहां लोग अपने मृतक परिजनों की आत्मा लेने इन अस्पतालों में पहुंचे थे.
जानकारी के अनुसार बूंदी के जिला अस्पताल में सोमवार को जजावर का परिवार अपने मृतक परिजन छीतर सैनी की आत्मा लेने पहुंचा. छीतर सैनी के बेटे कजोड़ ने बताया कि वर्ष 1984 में उसके पिता की जिला अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई थी. वे गांव में हुये लड़ाई-झगड़े में घायल हो गए थे. बीते 2 साल से घर में पारिवारिक समस्याएं आ रही हैं. गृह कलेश रहने लगा है. पुत्रवधु में देवता की छाया आने लगी. देवता ने ही उन्हें यहां अस्पताल से पिता को लेकर आने को कहा. ऐसे में पूरे परिवार और भोपा (घोड़ला) के साथ आए हैं.
जिला अस्पताल में करीब 1 घंटे तक आउटडोर के गेट पर तरह-तरह के टोने-टोटके चलते रहे. लेकिन अस्पताल प्रशासन ने उन्हें टोका तक नहीं. उस वक्त आउटडोर में काफी मरीज मौजूद थे. यह नजारा देख वहां भीड़ भी जमा हो गई. इस टोने-टोटके के चलते आउटडोर में आने वाले मरीजों को काफी परेशानी हुई. कर्मकांड का यह काम पूरा हो जाने के बाद अस्पताल की पुलिस चौकी से हेड कांस्टेबल वंदना शर्मा और कांस्टेबल केशव आए. उन्होंने उनको वहां से हटने को लेकिन तब तक वे अपने कर्मकांड पूरा कर चुके थे. उसके बाद परिजन कथित आत्मा लेकर वहां से रवाना हो गए.
हिंडोली के अस्पताल में भी गांव की दर्जनों महिलाएं देवताओं के गीत गाते हुए अपने मृतक परिजन की आत्मा लेने अस्पताल पहुंची. महिला वार्ड के पास घोड़ला के बताए निश्चित स्थान पर पूजन-धूप ध्यान का दौर शुरू हो गया. इस दौरान अस्पताल में मौजूद अन्य मरीज और परिजन सकते में आ गए. लगभग 20 मिनट तक वहां भी आत्मा को बुलाने का खेल चलता रहा. इस दौरान डॉक्टर और चिकित्साकर्मी भी असहाय होकर ये सब देखते रहे. कुछ देर बाद जोत स्वरूप आत्मा को लेकर घोड़ला के साथ महिलाएं अस्पताल से निकल गईं.
अस्पतालकर्मियों ने बताया कि यहां आए दिन आत्मा ले जाने वाले आते रहते हैं. बहुत से रोगियों की अस्पताल में जान चली जाती है. आत्मा ले जाने वाले किसी भी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न नहीं करते. वे अपना काम करके चले जाते हैं. ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण यहां अक्सर ऐसी घटनाएं होती रहती है. इसलिए किसी से कुछ भी कहते नहीं हैं.