नफरत की यह दीवार नहीं, प्रेम की है : कमल ज्योति

0
147

एक समय रहा होगा..जब सिर्फ भाषा की ही दीवारें रही होंगी। समय के साथ भाषा की दीवारें तो गिरती चली गई लेकिन जात-पात, धर्म के साथ दौलत की दीवार भी उठती गई…ये दीवारें यही तक थम जाती ऐसा भी न था..अब तो नफरतों का वह दीवार भी बनने लगा है जिसमें इंसान, रिश्ते भी सिमट के रह गए हैं.. नफरतों की दीवारों को कौन तोड़ेगा यह भी सवाल लाजिमी है..बरगद जैसे पेड़ों को मैंने जड़ से कभी उखड़ते नहीं देखा है.. और जड़ का जुड़ाव ही किसी को बहुत मजबूत बना देता है..जो आजकल के रिश्तों में दिखता तो है, लेकिन महसूस नहीं होता..जांजगीर-चाम्पा जिले के बलौदा में बहुत पुरानी इस खंडहर की दीवार में बरगद के इस पेड़ के जड़ो को चिपके हुए देखा तो महसूस हुआ कि किसी पेड़ की जड़े खोखली हो या फिर दीवारों की नींव कमजोर… ऐसे पेड़ या दीवारें हवाओं के हल्के झोंको में भी धराशायी हो जाती है..यह घर एक खंडहर में भले ही तब्दील हो गई है, लेकिन मजबूत जड़ो से जकड़ जाने के बाद मजबूती से खड़ी है। वहीं इन दीवारों के प्रेम का भी नतीजा है कि पेड़ भी हवाओं के झोंको से धराशायी नहीं होगी…। खैर नफरतों की दीवारों या खोखली रिश्तों की बुनियादों के बीच बरगद की जड़े और खंडहर की दीवारें कुछ लोगो को समझाने और समझने के लिए ही बहुत है…मेरा तो बस एक छोटी सी सोंच और तस्वीर को आपके सामने लाना था..।