रोड एक्सीडेंट में जान गंवाने या दिव्यांग होने पर मुआवजे का प्रावधान है। देश के प्रत्येक जिले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल (MACT) बने हुए हैं। काफी लोगों को इसका पता नहीं होता। ऐसे में पीड़ित खुद या उसके परिजन इस मुआवजे के लिए अप्लाई ही नहीं कर पाते। इसलिए हर शख्स को रोड एक्सीडेंट में मुआवजे से जुड़ी पूरी जानकारी होनी चाहिए।
अगर किसी के साथ सड़क हादसा हो जाए तो सबसे पहले इसकी सूचना पुलिस को दी जानी चाहिए। हादसा होने पर लोकल पुलिस MACT को इसकी सूचना देती है। जांच अधिकारी आता है, जो मुकदमा दर्ज करने, कोर्ट में चालान पेश करने और संबंधित पक्षकारों को ट्रिब्यूनल के सामने पेश करने का काम करता है। प्रक्रिया में पीड़ित पक्ष के लिए पुलिस की तरफ से ही लगभग सभी औपचारिकता पूरी कर दी जाती है, जिससे क्लेम हासिल करना आसान हो जाता है।
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कौन और कहां कर सकता है दावा?
मोटर व्हीकल एक्ट-1988 की धारा 166 के मुताबिक, एक्सीडेंट के दौरान जो शख्स जख्मी हुआ हो, डैमेज हुई प्रॉपर्टी का मालिक और हादसे में मारे गए शख्स के सभी या कानूनी प्रतिनिधि मुआवजे के लिए दावा कर सकते हैं। यह दावा आप जिस जगह पर रहते हैं, जहां कारोबार करते है, एक्सीडेंट वाले एरिया या फिर सड़क हादसे का आरोपी जिस इलाके में रहता है, वहां किया जा सकता है।
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खुद कैसे करें क्लेम?
मोटर व्हीकल एक्ट की धारा-166 के तहत 10 रुपये के कोर्ट फीस टिकटों पर क्लेम के लिए आवेदन किया जा सकता है। यह क्लेम सड़क हादसे के छह महीने के भीतर करना होता है।
क्लेम के लिए ये डॉक्यूमेंट जरूरी
रोड एक्सीडेंट में क्लेम के लिए कुछ डॉक्यूमेंट लगाने जरूरी होते हैं। इनके बिना क्लेम अटक सकता है या निरस्त हो सकता है। जानें क्लेम के लिए कौन से डॉक्यूमेंट जरूरी हैं:
कैसे तय होती है रकम?
ट्रिब्यूनल क्लेम की राशि तय करते समय मृतक या जख्मी व्यक्ति की मौजूदा आर्थिक हालात, उसकी उम्र, पारिवारिक स्थिति, फैमिली के मेंबरों की संख्या और पढ़ाई का स्तर समेत कई चीजें देखता है। इसके बाद एक निश्चित रकम तय की जाती है। इसे इन उदाहरणों से समझ सकते हैं:
- नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के मौजपुर निवासी विक्रात एक फैक्ट्री में सुपरवाइजर थे। वह क्लस्टर बस की चपेट में आए और पैर काटने पड़े। वह 88% दिव्यांग हो गए। एक करोड़ का दावा किया गया। ट्रिब्यूनल ने विक्रांत की कम उम्र, इनकम का नुकसान समेत कई पहलुओं पर विचार करते हुए 96 लाख का मुआवजा तय किया।
- महाराष्ट्र के ठाणे जिले में ओएनजीसी के जनरल मैनेजर धीरेंद्र चंद्र ठाकुरदास रॉय की हादसे में मौत हो गई। पत्नी, दो बेटियां और 86 साल मां थीं। रॉय के परिजनों को इस साल 2.85 करोड़ मुआवजा दिया गया। यह 25 साल के इतिहास में सड़क हादसे का अब तक सबसे बड़ा मुआवजा है।
हिट एंड रन में भी मुआवजे का प्रावधान
एक्सीडेंट होने पर गाड़ी वाला फरार हो जाता है, जिसे पुलिस नहीं पकड़ पाती है तो भी मृतक या जख्मी को मुआवजे का प्रावधान है। एक सोलेशियम फंड बनाया गया है, जिसमे से मृतकों के परिजनों को दो लाख रुपये, जबकि दिव्यांग हुए शख्स को 50 हजार रुपये देने का प्रावधान है।
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