छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित गुरुकुल को आगामी विधानसभा चुनाव के लिए खाली कराया जा रहा है| अस्थाई तौर पर स्कूल का संचालन 7 किलो मीटर दूर आईटीआई भवन में किया जा रहा है| जहाँ महज 6 कमरें हैं| इस निर्णय का आदिवासी समाज एवं गुरूकुल एलुमनी एसोसिएसन में रोष देखने को मिला है| साथ ही उन्होंने गुरुकुल के अस्तित्व को खतरा मानकर कलेक्टर से लिखित आवेदन देकर स्थानांतरण का विरोध किया है| साथ ही उग्र आंदोलन की चेतावनी दिया है।
गुरुकुल एलुमनी एसोसिएशन ने कलेक्टर को दिए आवेदन में बताया है की 2019 में गठित नवीन जिला गौरेला-पेण्ड्रा-मरवाही का जिला मुख्यालय बनाने के लिए शासकीय गुरुकुल विद्यालय पेंड्रा रोड को अस्थायी मुख्यालय बनाया गया था और विद्यालय के माध्यमिक शाला में अस्थायी जिला मुख्यालय संचालित किया जा रहा है, धीरे-धीरे विगत तीन वर्षों में विद्यालय का प्रशासनिक भवन, रेस्ट हाउस, आदिवासी भवन, स्टाॅफ क्वार्टर, पुराना मिडिल छात्रावास, खेल मैदान, लैब, पुस्तकालय एवं हाॅल को विभिन्न जिला कार्यालय के लिये अनधिकृत रूप से अधिग्रहित किया जा चुका है। वर्तमान में विद्यालय केवल 6 कमरों में संचालित हो रहा है, किंतु अब मतगणना, पितेज समअमस बीमबापदह एवं चुनाव का कंट्रोल रूम बनाने के लिये अब विद्यालय को आई टी आई भवन में स्थानांतरित किया जा रहा है। नवीन जिला मुख्यालय बनाने व निर्वाचन कार्य के लिये, गौरेला एवं पेण्ड्रा में काफी शासकीय भूमि एवं भवन है, टीकरकला में भी संयुक्त जिला कार्यालय के अधिकांश विभाग संचालित हो रहे हैं। फिर भी एक विशिष्ट विद्यालय को नष्ट करने का औचित्य समझ से परे है।
उन्होंने कहा की 1979 में स्थापित इस संस्था का गौरवशाली इतिहास रहा है। विद्यालय की जमीन को तात्कालिक दानदाताओं ने केवल शिक्षा एवं स्वास्थ्य उद्देश्यों के लिये दान में दिया था। इस विद्यालय परिसर में नोबेल विजेता गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर भी एक वर्ष तक अपनी पत्नी के ईलाज के लिये निवास किये थे। छात्र श्रम, खेल एवं पारंपरिक गुरू-शिष्य परंपरा को अक्षुण्ण बनाये रखने के लिए इस विशिष्ट विद्यालय का निर्माण किया गया था। इस तरह का यह प्रदेश में एकमात्र विद्यालय है। यह पूर्णतः आवासीय विद्यालय है, जहां लगभग 300 छात्र अध्ययन करते हैं, जिसमें 80 प्रतिशत छात्र अनुसूचित जनजाति, 15 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं 05 अन्य वर्ग के छात्र शामिल है।
आदिवासी अंचल में स्थित यह विद्यालय स्तरीय एवं गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने वाली प्रदेश का शीर्ष शासकीय आवासीय विद्यालय है, जिसने देश-विदेश में छत्तीसगढ़ का नाम रौशन किया है। इस ऐतिहासिक संस्था ने 2000 से अधिक प्रशासनिक अधिकारी, पुलिस अधिकारी, प्राध्यापक, वैज्ञानिक, कृषि अधिकारी, सनदी लेखाकार, बैंक अधिकारी, सैकड़ों इंजीनियर, चिकित्सक, षिक्षक, पुलिस, सैनिक, कार्यपालिक कर्मचारी एवं सफल उद्यमी पैदा किया हैं जो न केवल देश में अपितु विदेशों में अपनी सेवा दे रहें हैं। प्रतिवर्ष यहाॅ के खिलाड़ी राष्ट्रीय स्पर्धाओं में प्रदेश का नेतृत्व करतें हैं, कुछ खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहूॅचने में सफल हुए हैं। यहां के छात्र लगभग प्रतिवर्ष प्रदेश के परीक्षा परिणाम के प्रावीण्य सूची में अपना स्थान बनाने में सफल रहतें हैं।
13 कक्षाओं का संचालन केवल 5 कमरों में
उन्होंने आवेदन में अपना रोष जताते हुए कहा की अब इस विद्यालय के 10-12 वर्ष के बच्चे दो हाइवे को पारकर के प्रतिदिन 7 किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर होंगे। अगर इन बच्चों के साथ कुछ अनहोनी होती है या सड़क हादसे होते है, तो इसका जिम्मेदार कौन होंगे| क्या उस आई उस आई टी आई भवन में कन्ट्रोल रूम नही बनाया जा सकता| क्या विद्यालय के विज्ञान, गणित, वाणिज्य, कृषि संकाय सहित कुल 13 कक्षायें महज 05 कमरे में संचालित किया जा सकता है| पुस्तकालय, प्रयोगशाला, स्टाॅफ रूम, प्राचार्य कक्ष व कार्यालय कहाॅ पर होंगे| ऐसे क्या गुणवत्ता आयेगा जबकि इस विद्यालय में छात्रों का प्रवेश परीक्षा के माध्यम से होता है| क्या यह प्रतिभाशाली अनुसूचित जनजाति, अनुसूचित जाति व अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों का ब्रैन-ड्रैन नही है। 44 वर्ष लगे हैं इस ऐतिहासिक विद्यालय को संवारने में और एक तुगलकी फरमान से इसके अस्तित्व को समाप्त किया जा रहा है। इस विद्यालय को अन्यत्र स्थानांतरित करने से इसका मूलभूत ढांचा एवं उद्देश्य ही समाप्त हो जायेगा। जिला एवं निर्वाचन कार्य के लिये इस ऐतिहासिक विद्यालय को नष्ट करना कही से भी उचित नही है, जबकि अन्य विकल्प मौजूद हैं। कलेक्टर के इस फैसले से पालकों, आदिवासी समाज एवं गुरुकुल एलुमनी एसोसिएशन में काफी रोष है, उन्होंने ऐसे स्थानांतरण का विरोध किया है एवं तुगलकी फरमान के विरूद्ध उग्र आंदोलन की चेतावनी दिया है।