भारतीय संविधान अनुच्छेद 191
(Article 191)
सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
विवरण
(1) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य चुने जाने के लिए और सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा-
(क) यदि वह भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़कर जिसको धारण करने वाले का निरर्हित न होना राज्य के विधान-मंडल ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई लाभ का पद धारण करता है।
(ख) यदि वह विकृतचित्त है और सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है।
(ग) यदि वह अनुन्मोचित दिवालिया है।
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है या उसने किसी विदेशी राज्य की नागरिकता स्वेच्छा से अर्जित कर ली है या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किए हुए है।
(ङ) यदि वह संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन इस प्रकार निरर्हित कर दिया जाता है।
[स्पष्टीकरण – इस खंड के प्रयोजनों के लिए]* कोई व्यक्ति केवल इस कारण भारत सरकार के या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला नहीं समझा जाएगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है।
[(2) कोई व्यक्ति किसी राज्य की विधान सभा या विधान परिषद का सदस्य होने के लिए निरर्हित होगा, यदि वह दसवीं अनुसूची के अधीन इस प्रकार निरर्हित हो जाता है।]*
——————————-
* संविधान (बावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1985 की धारा 5 द्वारा (1-3-1985 से) \”(2) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए\” के स्थान पर प्रतिस्थापित।