प्रयागराज । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने योगी आदित्यनाथ के एक बड़े फैसले पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने सरकार के उस शासनादेश पर रोक लगा दी है, जिसमें 17 ओबीसी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया गया था। राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है।
शासनादेश 24 जून को जारी किया गया था। सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने याचिका दाखिल कर सरकार के इस शासनादेश को अवैध ठहराया था। जिस पर सोमवार को सुनवाई करते हुए जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के योगी आदित्यनाथ और पूर्ववर्ती सरकार की तीनअधिसूचनाओं पर रोक लगा दी है और राज्य सरकार से तीन हफ्ते में जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार कानून बनाकर किसी जाति को अनुसूचित जाति राष्ट्रपति की अधिसूचना से घोषित कर सकती है।राज्य सरकार को अधिकार नहीं है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस आदेश से 13 विधानसभा उप चुनाव की जोरदारी तैयारी कर रही योगी आदित्यनाथ सरकार के कुछ कदम पीछे हटे हैं। इस प्रकरण पर कोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने गोरख प्रसाद की याचिका पर यह निर्णय लिया है। हाई कोर्ट ने साफ कहा है कि इस तरह के मामले में केंद्र व राज्य सरकारों को बदलाव का अधिकार नहीं है। सिर्फ संसद ही अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति में बदलाव कर सकती है।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने 24 जून को शासनादेश जारी करते हुए 17 ओबीसी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का शासनादेश जारी किया था। सरकार के इस फैसले पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रोक लगा दी है। हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को गलत मानते हुए प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार सिंह से व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने फौरी तौर पर माना कि सरकार का फैसला गलत है और सरकार को इस तरह का फैसला लेने का अधिकार नहीं है। सिर्फ संसद ही एससी-एसटी की जातियों में बदलाव कर सकती है। केंद्र व राज्य सरकारों को इसका संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं है।
सरकार ने पिछड़े वर्ग (ओबीसी) की 17 जातियों को अनुसूचित जातियों की लिस्ट में डाल दिया है। इनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर आदि शामिल हैं। सरकार ने अपने इस फैसले के बाद जिलाधिकारियों को इन जातियों के परिवारों को प्रमाण देने का आदेश दे दिया था। करीब दो दशक से इन 17 ओबीसी को अनुसूचित जाति में शामिल करने की कोशिशें की जा रही हैं। इन जातियों की न तो राजनीति में भागीदारी है और न ही इनके अधिकारी ही बनते हैं। इससे पहले समाजवादी पार्टी और बसपा सरकारों में भी इन्हें अनुसूचित जाति में शामिल करने का मुद्दा उठा, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया।
राज्यपाल ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा अधिनियम 1994 की धारा 13 के अधीन शक्ति का प्रयोग करके इसमें संशोधन किया है। प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज सिंह की ओर से इस बाबत सभी कमिश्नर और डीएम को आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस बाबत जारी जनहित याचिका पर पारित आदेश का अनुपालन सुनिश्चित किया जाए। इन जातियों को परीक्षण व सही दस्तावेजों के आधार पर अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया जाए।
ओम प्रकाश राजभर ने कहा-खुल गई जुमलेबाजी की पोल
योगी आदित्यनाथ सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने के फैसले पर रोक लगाने को सराहा है। राजभर ने कहा कि अगर वास्तव में 17 जातियो को भाजपा न्याय देना चाहती है,तो प्रदेश सरकार पहले केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजकर लोकसभा व राज्यसभा में पास कराये उसके बाद राष्ट्रपति का अनुमोदन कराये तथा आरजीआइ व एससी/एसटी आयोग में पंजीकृत कराये तभी 17 अतिपिछड़ी जातियों को सामाजिक न्याय मिल पायेगा। राजभर ने आज हाई कोर्ट के फैसले के बाद ट्वीट किया।
राजभर ने कहा कि योगी सरकार के जुमलेबाजी का हाईकोर्ट ने किया पर्दाफाश। भाजपा ने अमीरों और सामान्य वर्ग के हित के लिए संविधान से ऊपर उठकर गरीब सावर्णो को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया,ना कोई कोर्ट गया ना रोक लगी। दो दशक से 17 जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के नाम पर सिर्फ वोट की रोटियां सेकी जा रही है। 27 प्रतिशत आरक्षण से बढ़ाकर 60 प्रतिशत आरक्षण करने के लिए केंद्र को भेजो प्रस्ताव राज्यसभा, लोकसभा में पास कराओ ताकि पिछड़ो को उनकी आवादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ मिल सके। राजभर ने कहा 17 जातियों को एससी में शामिल करने पर पर आज हाईकोर्ट ने सरकार के निर्णय को गलत ठहरा ही दिया। सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करो। 17 जातियों को मूर्ख मत बनाओ। उपचुनाव में वोट लेने की जल्दी ने पोल खोल दिया।