कहते हैं अगर किसी से ज्यादा उम्मीदें लगी हो तो बाद में निराशा हाथ लगती है. ऐसा बहुत सी बार हुआ होगा जब आपने किसी इंसान और दूसरी चीज के बारे में बड़ी-बड़ी बातें सोची होंगी और आपकी उम्मीदों और उत्साह में इजाफा हुआ होगा, लेकिन बाद में जो जैसा सोचा था वो वैसा न निकला हो तो आप निराश भी हुए होंगे. फिल्म ड्रीम गर्ल देखने के बाद मेरा भी ऐसा ही हाल है.
जब से मैंने ये फिल्म देखी है, तब से मेरे मन में यही बात आ रही है कि यार फिल्म ठीक थी, पर मजा नहीं आया. मजा क्यों नहीं आया ये भी बता देती हूं- क्योंकि फिल्म में ढेरों कमियां हैं. फिल्म के प्रोमो और ट्रेलर देखकर जो उम्मीदें हम सभी ने बांधी हैं, वो पूरी होने के चांस थोड़े कम ही हैं.
कहानी की बात करें तो ये है हमारे करमवीर (आयुष्मान खुराना) के बारे में, जो थिएटर के प्ले में सीता और द्रौपदी जैसे किरदारों को निभाता है. करम लड़की की आवाज निकाल सकता है और इसलिए उसे प्ले में लड़कियों के किरदार दिए जाते हैं. और भाई साहब लड़का सीता मैया के नाम से शहरभर में फेमस भी बहुत है. करम की जरूरतें उसकी सैलरी से बड़ी हैं और नौकरी उसे मिल नहीं रही. तो वो अपने टैलेंट का इस्तेमाल करता है और कॉल सेंटर में ‘पूजा’ बनकर काम करने लगता है. करम कॉल सेंटर में पूजा बनकर बातें करना शुरू करता है तो लोगों को उसकी बातें इतनी पसंद आ जाती हैं कि वो ‘पूजा’ के प्यार में पड़ने लगते हैं. अब पूजा के पास कॉलर्स नहीं आशिक हैं, जो उसे पाने के लिए अपनी जान दे सकते हैं, बीवी को छोड़ सकते हैं और यहां तक कि अपना धर्म भी बदल सकते हैं.
करम की जिंदगी में दो लोग हैं उसके पिता जगजीत (अनु कपूर) और उसका जिगरी दोस्त स्माइली (मनजोत सिंह). इसके बाद एंट्री होती है माही (नुशरत भरुचा) की, जिसे वो दिल दे बैठता है. करम की जिंदगी सेट होने ही लगती है कि उसमें टंटे होने शुरू हो जाते हैं. वही टंटे जो हम सभी की जिंदगी में कभी ना कभी जरूर हुए हैं यानी उसकी प्रोफेशनल लाइफ का उसकी पर्सनल लाइफ में घुसना और फिर उथल-पुथल मचना. यही से शुरू होता है सारा ड्रामा.
अब करते हैं असली बात और वो है फिल्म का स्क्रीनप्ले. फिल्म को देखकर लगता कि इसका स्क्रीनप्ले कुछ पुरानी फिल्मों से प्रेरित है. फिल्म की दिक्कत ये है कि ये जो सीख आपको देती है अगले ही पल उसे खुद ही खारिज कर देती है. जहां एक तरफ इसमें कहा जा रहा है कि किसी लड़की को उसके प्रोफेशन के हिसाब से जज नहीं करना चाहिए वहीं दूसरे ही पल पूजा को हर जगह लूज करैक्टर बताया जा रहा है.
इसके अलावा हमें अभी तक फिल्मों में लड़की को इम्प्रेस करने का बेहतर तरीका देखने को क्यों नहीं मिल रहा ये बात मेरी समझ से परे है. करम को माही से पहली नजर में प्यार हो जाता है लेकिन उसे पाने के लिए वो उसका पीछा करता है. फिर जब उसकी चोरी पकड़ी जाती है तो माही भी उसके प्यार में पड़ जाती है. कमाल है !
यूं तो ये कॉमेडी फिल्म है लेकिन आपको बहुत सी बार लगेगा कि इसमें आपको जबरदस्ती हंसाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि फिल्म में बढ़िया जोक्स या सीक्वेंस नहीं हैं. फिल्म का प्लस पॉइंट है इसमें की गई एक्टिंग. आयुष्मान खुराना फिल्म के हीरो हैं और अगर मैं कहूं कि ये आयुष्मान खुराना का शो है तो गलत नहीं होगा.
आयुष्मान ने अपने किरदार और आवाज कर जो पकड़ बनाई है वो तारीफ के लायक है. ये फिल्म एक और उदाहरण है कि आयुष्मान कितने टैलेंटेड आर्टिस्ट हैं. फिल्म में उनकी एक्टिंग, कॉमेडी, डांस सब अच्छा है. करम (आयुष्मान) के पिता बने अनु कपूर का काम अच्छा है और बहुत सी जगह वो लाइमलाइट आयुष्मान से छीन ले जाते हैं. अभिषेक बैनर्जी अपने किरदार में बहुत सही हैं और अगर उन्हें थोड़ा और स्क्रीन टाइम दिया जाता तो कमाल हो जाता. राज भंसाली का किरदार मजेदार हैं और विजय राज हमेशा की तरह कमाल हैं. मनजोत सिंह को फुकरे के बाद दोबारा अच्छा काम करते देखकर खुशी हुई. नुशरत भरूचा को बहुत कुछ करने को मिला नहीं, लेकिन जितना मिला उन्होंने निभा लिया. इसके अलावा फिल्म में नजर आए बाकी सपोर्टिंग एक्टर्स का भी काम अच्छा है.
फिल्म के ऐसे बहुत से जोक हैं, जो एक्टर्स की बढ़िया एक्टिंग और डिलीवरी के चलते आपको हंसा पाए हैं. स्लो शुरू हुई फिल्म ड्रीम गर्ल कभी अपनी रफ्तार पकड़ती है तो कभी धीमी पड़ है. ये कहा तो गया था कि मथुरा में सेट है लेकिन सही में इसकी कहानी कहां सेट है ये समझने में आपको मुश्किल जरूर होगी. यूपी के बोर्ड और हरियाणा पुलिस के बैरिगेड देखकर कंफ्यूजन होता है. हां, इसके गाने अच्छे हैं. जहां दिल का टेलीफोन सॉन्ग आपके दिमाग में घर कर लेता है वहीं राधे राधे की कोरियोग्राफी काफी बढ़िया है. ये फिल्म तो एंटरटेनिंग हैं, लेकिन इसका क्लाइमेक्स आपको बिल्कुल खुश नहीं करता. क्लाइमेक्स में उथल-पुथल दिखाने की कोशिश बहुत की गई लेकिन अफसोस इसमें नाकामयाबी हाथ लगी. इस फिल्म में फील की कमी है.
ड्रीम गर्ल देखने के बाद मैं ये कह सकती हूं कि अगर आप इसे देखने का मन बनाए तो कृपया अपना दिमाग घर पर छोड़कर जाना. ये बहुत सोचने समझने वालों के लिए नहीं है. फिल्म की कमियां नजरअंदाज करने के हिसाब से बहुत ज्यादा हैं, जो इसे हमारी सोच से अलग बनाती है.